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कैसे कहूँ, प्यार है तुमसे

कैसे कहूँ मुझे प्यार है तुमसे डरता बहुत हूँ, खो देने से किस मुँह से कहूँ मुझे प्यार है तुमसे डरता बहुत हूँ, तुमसे अगर कह भी दिया तो वह मेरे जिंदगी के शायद आखिरी शब्द होंगे इसलिए डरता हूँ मार देता हूँ खुद को खुदगर्जी में ढाँप लेता हूँ आँखों को तुमसे जो बहुत कुछ बताना चाहती हैं तुम्हें रोक लेता हूँ होंठ को किसी हिटलर की तरह ताकि बुदबुदा न सके कभी कोई प्यार के नग़मे रोक लेता हूँ उंगलियों को उस तानाशाह की तरह ताकि वह कर सकें न कोई गुस्ताखी और उलझ जाय न रेशमी बालों में जहाँ भटकना चाहता है हरपल मगर सम्भल जाता हूँ मैं सम्भाल लेता हूँ खुद को क्योंकि तुम्हारा दोस्त मजबूत बहुत है हाँ... हाँ मजबूत बहुत है बाहर से बहुत निर्बल है वह अंदर से इसलिए टूटना चाहता नहीं दोबारा लेकिन कोई बात नहीं युग बीतेगा, उम्र बढ़ेगी जिंदगी कम होगी परन्तु एक चीज जो सदैव ठहरी होगी वह है दिल मेरा जो कभी न गुनगुनयेगा तेरे प्यार के नग़मे अपने होठों से
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व्यापारी बैठे हैं

मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे है.................... दिल का लगा बाज़ार यहाँ व्यापारी बैठे है.................... रोज सबरे उठते-उठते मंडी में दौड़ आते देर रात तक ये सौदागर समय यहाँ पर बिताते रहना तू होशियार यहाँ मदारी बैठे है............  मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे है............... दिल का सौदा झटकों में करते जिस्म चंद रुपयों में बेचें पाकर गाड़ी, मोटर, बंगला सुख की परिभाषा खेंचे हरदम रहना तैयार यहाँ वो किये तैयारी बैठे हैं.. मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे हैं............... आज पहला, कल दूसरी परसों तीसरी लाएँ चमक-चमक कर, ऐंठ-ऐंठ कर अपना रुत दिखलाए पापी, लोभी, छली, कपटी सब लिए लुकारी बैठे हैं....... मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे हैं.............. प्यार के पावन-पाक मतलब को बदनाम इन्होंने कर डालें शतरंज की चाल से ये खुद चलते परेशान अपनों को कर डालें इनके चंगुल से बचना थामे हथियार ये बैठे हैं मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे हैं............. दिल का लगा बाज़ार यहाँ व्यापारी बैठे हैं............. मत करना तू प्यार यहाँ व्...

तुझे यार कहूँ या प्यार कहूँ

तुझे यार कहूँ या प्यार कहूँ या अपने दिल का मैं खून करूँ शायद ऐसा कभी होगा नहीं दिल की बात लब पर नहीं मैंने जब-जब भी तुझे देखा है अपनी नजरों से निरेखा है तू पास मेरे रह जाती हो मेरे स्वप्नों को तू सजाती हो लेकिन मैं हूँ मजबूर यहाँ पास होकर भी तुमसे दूर यहाँ जीवन की आपाधापी में तुम्हें वरदान कहूँ या उपहार कहूँ तुझे यार कहूँ या प्यार कहूँ या अपने दिल का मैं खून करूँ जब अनगिनत घड़ियां सोती है तब तेरी कहानी रचता हूँ जब दीर्घ मौन मैं हो जाऊँगा उस पल की यादें रचता हूँ एक पल को पूरा जीवन कहता जीवन को पल-पल रचता हूँ पल-पल जीवन में सौ कहानी कहानी का कल मैं रचता हूँ जीवन के इस नए कहानी को मतलब मैं लिखूँ या बेकार लिखूँ तुझे यार कहूँ या प्यार कहूँ या अपने दिल का मैं खून करूँ यह बंधन प्यारा टूटे न मेरी मौन कभी भी टूटे न पग-पग पर विस्वास जो हैं वह विस्वास कभी भी रूठे न चलता समर में एक दिन मैं भी इसमें तलवार मेरी कभी टूटे न मेरा यार कभी भी रूठे न दिल से प्यार कभी भी छूटे न किया कठोर हृदय अपना मैं मगर डोर साँस का टूटे न छोड़ घर-बार परिंदे अपने मैं खुद को और कितना ब...

शाम हो तुम

आज सुबह सवेरे जीवन के किसी ने कहा, मैं तुम्हें शाम लिखूँ मगर असमंजस में था कौन सी शाम जीवन की शाम, या शाम का जीवन दोनों ही ढल जाते हैं एकाएक बिना किसी पूर्व सूचना के या यूं कहें, हमें इशारे समझ न आते शाम भी करती हैं इशारे ढलने से पहले तुमने भी किया था, बदलने से पहले मगर........                     मैं समझा नहीं, समय रहते एक ढली तो रात हो गई एक के ढलते बरसात हो गई बारिश में भींगे, हम तुम उस शाम की तरह जब होकर भी नहीं थी या कहें तो पास थी मगर केवल यादों में सिमटी हुई एक ख़्वाब की तरह जो अधूरी होकर भी पूर्ण थी बस किसी तरह से ढलती रहें यह शाम मन करता है लिख दूँ तुझे मणिकर्णिका का वह शाम जहाँ खुद को विलीन किया था तेरे लिए जो लेकर मुझे विदा हो गई मुझसे खुद में खुद की दुनिया में जो नजरों के सामने भी मैं नजरअंदाज हूँ तुमसे                               उज्ज्वल कुमार सिंह                   ...

इंद्रपुरी में मोबाइल

चित्रगुप्त बोले इंद्र से हमारी टेक्नोलॉजी का डेट लास्ट हैं भगवन जरा धरती पर झांकिए, कम्युनिकेशन कितना फ़ास्ट हैं इंद्र बोले चित्रगुप्त जी आपने, बात पते की बोली है पहली बार देव् हित में, मुँह आपने खोली हैं तुरन्त बुलाइये नारद को, धरती पर पेठाया जाय अपने काम के ख़ातिर, दो-चार मोबाइल मंगाया जाय नारद पहुँचे झाल बजाते, भगवन आपने बुलाया है कहिये क्या परेशानी है, हमको याद फरमाया है सुनिए नारद जी धरतीलोक में, मोबाइल का उपयोग है हम सन्देश आपसे भेजते, उधर जीमेल का प्रयोग है फटाफट जाइये, मोबाइल लाइये, सिम लाइयेगा साथ में टावर पकड़ाने ख़ातिर, एक दो ठो टावर उखाड़े लाइएगा हाथ में नारद आये मोबाइल खरीदे, लगे सिम की लाइन में आधार कार्ड बनवाये नहीं है, काम चला ल चचा साइन से दुकानदार पक्का भक्त था, नारद को पहचान गया सिम देने के बदले में, पर सिम एक वरदान माँग गया लफड़ा मोल नहीं लेना था, झटपट नारद मान गए सिम के बदले स्वर्ग ले जाने का, दुकानदार से ठान गए टावर उखाड़ कर चल दिये, इंद्रपुरी की ओर टावर से लिपटा प्रेमी, दौड़ा नारद की ओर कौन हो, क्या करें हो, यह टावर कहाँ ले जाओगे अपनी रामकली से कैसे...

माली और गुलाब

माली ने तोड़ दिया खिला हुआ गुलाब काँटों ने रोका भी लेकिन उसे किसी और को चढ़ाने का मन था लेकिन गुलाब का किसी को चढ़ना पसन्द नहीं इसीलिए बिखेर दिए अपने सभी पंखुड़ियों को तोड़ दिए सपने अपने खिलने का महकने का चमकने का और सोई गई आशा किसी ढ़लती शाम सी फिर भी माली निर्मोही था छोड़ा नहीं उसे उस हाल में भी कुचल दिया पैरों के तले ताकि वह मचल न सकें पुनः कभी दमक न सकें वह माली कभी संकट में हो तो क्या गुलाब चढ़ेगा उसपर या लुटाकर अपनी हस्ती बचा लेगा अपने माली को जिसने उसे सींचा था कभी या लेगा कुचले जाने का बदला उस निर्मोही से जीना तो उसी ने सिखाया था एक बात मोहब्बत की सिखाया था उसने काँटों के बीच मुस्कुराने की कला सिखाया था उसने मुस्कुराना जीवन में सिखाया था  उसने मोहब्बत में जीना सिखाया था उसने                                      उज्ज्वल कुमार सिंह                                   ...

नफ़रत

नफ़रत शायद यह मोहब्बत के बाद होता हैं दिल के हर बिखरे टुकड़े के खनक से निकलती हैं आवाज, नफ़रत..नफ़रत.. नफ़रत गूँजता व्योम में जन-जन के आलोक में मुस्कुराता चेहरा भी चिल्लाता हैं, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत पूर्ववर्ती राग न होने पर घृणा होती हैं अनुराग होने पर नफ़रत कभी दौर-ए-जमाना ऐसा था चेहरा देख कर करते थे दिन का आगाज़ कभी दौर-ए-जमाना ऐसा था एक अल्फ़ाज़ सुनने को रात भर जागते थे कभी दौर-ए-जमाना ऐसा भी था घण्टों बीत जाता था बाहों में उसके अब उसे मेरी आवाज़ से भी नफ़रत हैं मेरे नाम तो मानो 46 का हरिया चमार क्योंकि उसके लब चिल्लाते है, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत मुझसे न होगा यह कभी क्योंकि प्रेम नफ़रत नहीं एक नफ़रत ही बन सकता है, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत                                            उज्ज्वल कुमार सिंह                                             हिन्दी विभाग   ...