नफ़रत
शायद यह मोहब्बत के बाद होता हैं
दिल के हर बिखरे टुकड़े के खनक से
निकलती हैं आवाज, नफ़रत..नफ़रत.. नफ़रत
गूँजता व्योम में
जन-जन के आलोक में
मुस्कुराता
चेहरा भी चिल्लाता हैं, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत
पूर्ववर्ती राग न होने पर घृणा होती हैं
अनुराग होने पर नफ़रत
कभी दौर-ए-जमाना ऐसा था
चेहरा देख कर करते थे दिन का आगाज़
कभी दौर-ए-जमाना ऐसा था
एक अल्फ़ाज़ सुनने को रात भर जागते थे
कभी दौर-ए-जमाना ऐसा भी था
घण्टों बीत जाता था बाहों में उसके
अब उसे मेरी आवाज़ से भी नफ़रत हैं
मेरे नाम तो मानो 46 का हरिया चमार
क्योंकि उसके लब चिल्लाते है, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत
मुझसे न होगा यह कभी
क्योंकि प्रेम नफ़रत नहीं
एक नफ़रत ही बन सकता है, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत
उज्ज्वल कुमार सिंह
हिन्दी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
शायद यह मोहब्बत के बाद होता हैं
दिल के हर बिखरे टुकड़े के खनक से
निकलती हैं आवाज, नफ़रत..नफ़रत.. नफ़रत
गूँजता व्योम में
जन-जन के आलोक में
मुस्कुराता
चेहरा भी चिल्लाता हैं, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत
पूर्ववर्ती राग न होने पर घृणा होती हैं
अनुराग होने पर नफ़रत
कभी दौर-ए-जमाना ऐसा था
चेहरा देख कर करते थे दिन का आगाज़
कभी दौर-ए-जमाना ऐसा था
एक अल्फ़ाज़ सुनने को रात भर जागते थे
कभी दौर-ए-जमाना ऐसा भी था
घण्टों बीत जाता था बाहों में उसके
अब उसे मेरी आवाज़ से भी नफ़रत हैं
मेरे नाम तो मानो 46 का हरिया चमार
क्योंकि उसके लब चिल्लाते है, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत
मुझसे न होगा यह कभी
क्योंकि प्रेम नफ़रत नहीं
एक नफ़रत ही बन सकता है, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत
उज्ज्वल कुमार सिंह
हिन्दी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
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