Skip to main content

टमाटर और बैंगन का इश्क़

यह कहानी जो सुनने में थोड़ी अटपटी तो लगेगी लेकिन अगर हम सिर्फ इसे एक कहानी के तौर पर पढ़े तो मज़ा आएगा ऐसा आशा करता हूँ । यह कहानी जीवन के दो सबसे खास दोस्त प्रगति मधुप और अंजली मिश्रा को समर्पित ।

यह कहानी है टमाटर और बैंगन की । जी हाँ, सब्जी टमाटर और बैंगन की । आज टमाटर दुःखी मन से मगर तेज कदमों से आगे बढ़ रही है, दुःखी इसलिए क्योंकि आज उसे अपना घर छोड़ कर पराये घर को जाना पड़ रहा है, जो कभी चाहा न था । अरे भैया बात हो रही है, विद्यालय छोड़ने की, आज पुराने विद्यालय को छोड़कर एक नए नवेले विद्यालय में जाना था जहाँ की संस्कृति कुछ मिलती तो बहुत जुदा-जुदा है । ठीक उसी प्रकार जैसे किसी लड़की को शादी के बाद अपना घर छोड़ पति के घर जाना पड़ता है और वहाँ उसके सभी पहचान को बदल दिया जाता है, और अब वह ससुराल से जानी जाती है, इस कारण टमाटर भी दुःखी है, लेकिन खुश इस वजह से कि आज उसके जीवन का बहुत अहम दिन है । टमाटर अपने दोस्त भिंडी और टिंडे के साथ थी परन्तु उसे क्या पता कि उसका पीछा इसी गली के दो लफंगे, यानी बैंगन और मूली कर रहे है, और सामान्य इंसानी छात्र की तरह लाल वाली तेरी, हरी वाली मेरी तय हो जाता है और जद्दोजहद शुरू हो जाती है उसे अपने प्रेम पाश में फँसाने की । उसी में आज तय हो गया कि लाल वाली यानी टमाटर काली बैंगन की, और हरी वाली वाली उजले मूली की, लेकिन बहस इसपर आ कर रुक जाती है कि फिर ये टिंडा किसकी ।
बैंगन :- भाई मूली, तू लम्बा भी है, और उजला भी, तू हरी भिंडी के साथ टिंडे को भी रख ले ।
मूली :- भाई बैंगन, मैं एक से ही खुश हूँ ।
बैंगन :- फिर चल न, क्लास में कोई गाजर टिंडे को भी घास डाल ही देगा, और कोई न डाला तो फिर उसे कटहल का घोषित कर के कटहल को चिढ़ाया जाएगा ।
मूली :- सही खेल गया भाई ।
लेकिन एक दिक्कत है, उस आलू के प्रकोप से खुद को बचाना भी है । हाँ, भाई विद्यालय के प्रेम को आलू की नजर न लगे, और टमाटर और बैंगन का भरता बनने से पहले कहीं दोनों का कचूमर न बन जाएं , एक तरफ प्रेम कहानी को आगे बढ़ाना था, और भरता बना ही डालने की जिद बैंगन ने पकड़ ली । अब भरता क्या होता है, जान लीजिए ।  भरता वह जगह है, जहाँ प्रेम की पराकाष्ठा में एक खुद को चिड़कर दूसरे को खुद में समेटता है, वहीं दूसरा खुद के वजूद को मिटाकर दूसरे के लिए खुद को उसके अंदर होम कर देता है , और भैया बैंगन का भरता किसे पसन्द नहीं , और वह भी टमाटर के जायके के साथ, तब कहना ही क्या ? मुँह में पानी आ जाएं । लेकिन एक समस्या है, इस आलू का क्या करें, जिसका डर हमेशा बैंगन को है कि कहीं आलू नाराज होकर दादाजी लौकी लाल से शिकायत न ठोक दे । इसी डर के मारें बैंगन टमाटर से अपने प्यार का इज़हार न कर पा रहा ।
      खैर उन्हें भी जोड़ दिया बाज़ार(फेसबुक) ने , और आज तरोई लाल की वजह से बैंगन ने टमाटर को डरते डरते मित्रता प्रस्ताव भेज ही डालता है  और प्रस्ताव स्वीकार होते ही ठीक वैसा ही जश्न बैंगन मनाता है जैसे वर्ल्ड कप जितने के बाद खिलाड़ी मानते है । उसे आज वर्ल्ड कप मिल गया है । टमाटर इसे सामान्य मित्रता प्रस्ताव समझ कर स्वीकार करती है, उधर बैंगन को लगता है कि मेरे प्रेम प्रस्ताव को ही स्वीकार कर लिया । उसे क्या पता, कि एक दिन यह मित्रता मोहब्बत में तब्दील हो जाएगी  और खुद को भरते में प्रविष्ट होने के लिए तैयार होना पड़ेगा । बातचीत आगे बढ़ी और आज बैंगन ने मोबाइल नंबर की माँग कर डाली और मिलते ही समझ बैठा कि आज तो करोड़ो की लॉटरी लग गई । लेकिन आज दो साल बीत गए, आलू के डर से केवल मैसेज से तो बातचीत होती है । कई बार तो बैंगन ने सोचा कि आज तो पूछ ही डालूँ कि क्या भरते में भरी जाओगी ? लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि टमाटर कभी अकेले बैंगन से मिली ही नहीं, जब बैंगन देखता तब भिंडी, टिंडा, नेनुआ या कोई और साथ रहती और बैंगन को देख दाँत फाड़ती, देखो ससुरा को, आज तक इसका भरता नहीं बना ।
           खैर सबके फलक पर उजियारा होता है और आज कक्षा खत्म होने के बाद बैंगन ने बड़ी हिम्मत जुटा कर परन्तु सामने न आकर कायरों की भाँति अपना प्रेम संदेश एक संदेश के माध्यम से टमाटर को भेजता है लेकिन हाथ वहीं जबाब लगता है कि तुम मेरे एक अच्छे दोस्त हो । अरे भैया, टमाटर और बैंगन दोस्त हो सकते है, ठीक है, परन्तु क्या दोनों का भरता नहीं बन सकता । लेकिन टमाटर भी क्या करें पहले ही वह चुकंदर के साथ सलाद बनने को कटिबद्ध है । इसी दरम्यान होता यह है कि टमाटर दूसरे बाजार को चली जाती है और बैंगन दूसरे बाजार में । बाजार में दूसरी सब्जीयाँ भी है, तो बैंगन यह समझकर कि अपने नसीब में तो भरता बनने का ही नहीं है, चलो अदौरी के साथ में मसालेदार सब्जी ही बन जाएँ । सब्जी बनने के लिए काठ की हांडी आँच पर तो चढ़ती है, परन्तु वह टिक नहीं पाती है, और बैंगन बेचारा फिर अपना सा मुँह लिए इधर उधर फिरता है । हमेशा की तरह आज भी बैंगन, टमाटर से अपने मन की बात करते करते फुट-फुट कर रोने लगता है । टमाटर भी अब दुविधा में है, कि चुकंदर के साथ सलाद सबको पसन्द आएं न आएं और वचन के कारण चुकंदर को छोड़ नहीं सकती और इधर बैंगन भी प्यारा हैं, और उसके साथ भरता भी बन सकता है।
           खैर उहापोह के बीच मे ही बैंगन का ख्याली भरता बनता है और टमाटर अपने प्यार की छौंक मारती तो है, पर अब शायद ही फिर विद्यालय की तरह प्यार आएं जब एक ही बाजार में अब भरता तैयार होने से पहले बैंगन के साथ नज़र आएं । क्योंकि टमाटर चुकंदर की, और बैंगन दो बार का रिजेक्टेड माल हो चुका है । दोनों विद्यालय वाले प्यार को लौटाने की बात तो करते है, लेकिन यह शायद ही अब मुमकिन हो पाएं बिना भरता के बने हुए या अगर मुमकिन हुआ भी तो दो -चार पलों के लिए होगा । और भरता बनने से पहले लाल टमाटर को बेहद पसंद केचप और मछली खिलाना बैंगन की ख्वाहिश कब पूरी होगी ?, जो टमाटर को बैंगन पर फ्री मिलेगा ।




              उज्ज्वल कुमार सिंह
                   हिंदी विभाग
           काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

Comments

Popular posts from this blog

यहूदी की लड़की का समीक्षा

पुस्तक का नाम :- यहूदी की लड़की लेखक              :- आग़ा हश्र कश्मीरी लेखन की विधा  :- नाटक 'यहूदी की लड़की' नाटक  का नाम पहली बार मैं स्नातक तृतीय वर्ष के पाठ्यक्रम में पढ़ा तो बहुत उत्सुकता हुई की पढ़ा जाय यह नाटक कैसा है, चूंकि आग़ा हश्र कश्मीरी का नाम पहले से सुना हुआ था, तो मैं फौरन इस किताब को खरीद और एक ही दिन में इसे पूरा पढ़ डाला, और मैं अपने अध्ययन के आधार पर आपके समक्ष इसकी एक रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ, आपको कैसा लगा यह आप अवश्य बताइयेगा, जिससे मेरा उत्साहवर्धन हो और अगली बार और अच्छा कर सकूँ ।          आइये तो शुरू करते है इस नाटक के पहले दृश्य के पहले अंक से, जैसे ही पर्दा उठता है मंच पर डैसिया और सहेलियों के आगमन होता है, जिसमें डैसिया अपने होने वाले शौहर के उपेक्षा से विरह की उस व्यथा को अनुभव कर रही है, जो प्रेमी अपने प्रेमिका से बिछड़ने के बाद करता है, एक चातक चातकी से बिछड़ने पर करता है, और शायद पपीहा भी अपने युगल के विरह में ही पीहू-पीहू करता है । यहीं पर डैसिया अपने मंगेतर को आता देख...

ईदगाह

ईदगाह एक ऐसा नाम जो सुनते ही बचपन की उस याद को ताजा कर देती है जो हम ईद के मेले से 25 पैसे ही बाँसुरी और 10 आने की जलेबी लेकर शान से अकड़ते आते थे कि आज के बादशाह हम ।         लेकिन जब थोड़े बड़े हुए तो सबसे पहली बार कक्षा 2 में ईदगाह कहानी पढ़ने को मिली । तब हमें कहानी से मतलब होती थी, लेखक कौन हमें इसकी बिल्कुल भी इल्म नहीं होती या अगर हम यूँ कहें तो हमें उस समय इससे कोई लेना देना नहीं होता था, हमें तो बस कहानियाँ अच्छी लगती थी । जब थोड़े बड़े हुए तो पता चला यह कहानी तो कलम के जादूगर और हिंदी जगत (हिंदुस्तानी तहज़ीब) के उस सितारे की है जिसने हमें होरी के गोदान से लेकर घीसू और माधव के कफ़न से इस दुनिया को परिचय कराया । प्रेमचंद उस नगीने का नाम हैं जिसकी सेवासदन आज भी हमें आईना दिखाती हैं कि देखो तुम किस समाज में रह रहे हो, और किस तरह तुम्हारे ही कारण ये सेवासदन हैं ।          चलिए ईदगाह कहानी पर आते हैं, यह एक ऐसी कहानी है कि एक एक शब्द से ऐसा लगता हैं कि किरदार बस किताब से बाहर निकलने ही वाला है । कहानी में समाज के चित्रण के साथ साथ उस समय के ...