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यहूदी की लड़की का समीक्षा

पुस्तक का नाम :- यहूदी की लड़की
लेखक              :- आग़ा हश्र कश्मीरी
लेखन की विधा  :- नाटक

'यहूदी की लड़की' नाटक  का नाम पहली बार मैं स्नातक तृतीय वर्ष के पाठ्यक्रम में पढ़ा तो बहुत उत्सुकता हुई की पढ़ा जाय यह नाटक कैसा है, चूंकि आग़ा हश्र कश्मीरी का नाम पहले से सुना हुआ था, तो मैं फौरन इस किताब को खरीद और एक ही दिन में इसे पूरा पढ़ डाला, और मैं अपने अध्ययन के आधार पर आपके समक्ष इसकी एक रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ, आपको कैसा लगा यह आप अवश्य बताइयेगा, जिससे मेरा उत्साहवर्धन हो और अगली बार और अच्छा कर सकूँ ।
         आइये तो शुरू करते है इस नाटक के पहले दृश्य के पहले अंक से, जैसे ही पर्दा उठता है मंच पर डैसिया और सहेलियों के आगमन होता है, जिसमें डैसिया अपने होने वाले शौहर के उपेक्षा से विरह की उस व्यथा को अनुभव कर रही है, जो प्रेमी अपने प्रेमिका से बिछड़ने के बाद करता है, एक चातक चातकी से बिछड़ने पर करता है, और शायद पपीहा भी अपने युगल के विरह में ही पीहू-पीहू करता है । यहीं पर डैसिया अपने मंगेतर को आता देख एक गाना गाती है, "देखो बलमा मोरी बाली उमरिया" कहने का तात्पर्य यह है कि यहाँ डैसिया अपने मंगेतर को अपने सौतन के प्रेम पाश से छुड़ाने के लिए अपनी कम उम्र का हवाला दे रही है और कहती है ' मेरी इस कम उम्र पर तो तरस खाओ और हे ! प्राणप्रिये आपकी उपेक्षा से मैं यूँ ही घुली जा रही हूँ, मुझे और मत तड़पाइये, मगर एक बात तो सच है कि जब तक प्रेम कहानी में एक बार विरह का दर्द न देखने को मिले तब तक शायद वह पूर्ण नहीं होती, क्योंकि एक तरह से हर प्रेम कहानी में एक बार विरह का दर्द अनायास ही मिल जाता है । और यूँ ही डैसिया की उपेक्षा कर मारकस का जाना उसे नागवार गुजरता है और उस आपार विरह को खुद में समेटे अपने नारी होने परिचय देती है । जिस तन्मयता और ममता के उत्कृष्ट शिखर पर नारी होती है वहाँ तक पहुँचना सबके बस की बात नहीं है । यूँ ही नहीं नारी को मातृ शक्ति कहा जाता है, सच में जो ऊर्जा का संचार एक नारी कर सकती है , वह पुरुष कभी नहीं कर सकता ।
      रंग बदलने और फरेब में माहिर मारकस तुरन्त अपना भेष बदल कर एक यहूदी के भेष में डैसिया को रोता,बिलखता और प्रेम की आग में दहकता छोड़ यहाँ राहील के साथ अपने प्रेम का इज़हार करने आ जाता है, यह बात अलग है कि बेशक मारकस राहील से बेइंतहा मोहब्बत करता है, लेकिन यहाँ वह फरेबी इस कारण से कहा जायेगा क्योंकि ना ही वह डैसिया को सारी सच्चाई बताया है, और राहील भी मारकस के असली स्वरूप के जानकारी से महरूम है ।  बहुत सी प्यार मोहब्बत की बातें करने के बाद आज मारकस का दिल बहुत बेचैन है, पता न क्यों उसको आज बेचैनी सताए जा रही है, शायद आज उसे भी यह अनुभव हो गया है कि वह जो कुछ भी कर रहा है वह सब गलत है, और किसी भी निश्छल और पाक दिल लड़की के साथ ऐसा करना सरासर गलत है, आज पहली बार उसके दिल में कुछ मानवीय संवेदना जगी है ।
        तभी डैसिया उस बूढ़े कारीगर से मिलने आती है, जिसको अपने होने वाले शौहर के लिए हार बनाने का हुक़्म दी है । अचानक से डैसिया को यहाँ देख मारकस के हाथ पैर फूलने लगते है, मगर यहाँ  भी डैसिया की जितनी तारीफ़ की जाय उतनी कम कि अपने शौहर को सामने देखती है फिर उसे अपने शौहर के प्रति इतना प्रगाढ़ विश्वास है कि वह यह मान लेती है कि यह यहूदी लड़का मारकस का हमशक्ल होगा, वह एकदम आश्वस्त है कि उसका मारकस फरेबी नहीं हो सकता । भले ही वह उसकी उपेक्षा करता है मगर वह फरेबी नहीं हो सकता । यहाँ भी उसने अपने पाक दिल का परिचय देते हुए यह कहती है कि मेरे शौहर का नाम मेरे शौहर के इस हमशक्ल इंसान से गुदवाना । इसके बाद डैसिया का प्रस्थान हो जाता है और तब मारकस के जान में जान आती हैं । लेकिन अब वह पहले से कहीं ज्यादा विचलित हो चुका है, उसे अब डैसिया की वह भोली सूरत और पाक दिल याद आता है जबकि दूसरी तरफ राहील का बेइंतहा मोहब्बत । राहील अपना समझ कर ही तो आपना तन मुझे समर्पित की है, मेरी काम तृष्णा के लिए वह खुद को मेरे हवाले कर दी, सच में राहील मुझसे बहुत प्यार करती है, और मैं इसे अगर इसे धोखा दूँगा तो इसे बहुत दुःख होगा , और शायद यह उस दुःख को सहन भी नहीं कर पायेगी । इन्हीं सब ख्यालातों में डूबा मारकस पता नहीं ख़्वाब के किस लोक में विचरण कर रहा था तभी राहील उसे बोलती है ,"क्या बात है, इतने परेशान क्यों दिख रहे हो,कोई बात हो तो बताओ" फिर मारकस उसे अगले दिन बाग में मिलने के लिए बोलकर घर को लौट जाता है ।
         आज राहील का दिल बहुत तेज धड़क रहा है क्योंकि क्या बात है कि कल उसने मुझे कुछ बताया नहीं और आज बगीचे में अकेले वो भी अब्बा से छुपकर मिलने बुलाया है । खैर राहील बगीचे में जाति है जहाँ मारकस पहले से ही उसका इंतजार कर रहा था । यहाँ प्रेम जाल में जकड़े मारकस को अपने और अपने प्रेमिका के घर वालों की चिंता नहीं, उनके इज्ज़त की कोई चिंता नहीं । आज वह राहील को साफ साफ बता दिया कि हो सके तो तुम मुझे मांफ करना, मैं यहूदी नहीं एक रोमन हूँ । इतना सुनते ही राहील के पैरों तले जमीन खिसक जाती है और उसके नजरों के सामने अंधेरा छा जाता है, किसी प्रकार मारकस उसे भरोसा दिलाता है कि मैं रोमन हूँ तो क्या चलो हम और तुम किसी दूसरे देश में भाग चलते है जहाँ हमें कोई नहीं जानता । हम वहीं निकाह पढ़ लेंगे और खुशी खुशी अपना जीवन बिताएंगे, उसके कुछ दिनों के उपरांत फिर हम अपने देश को लौट जाएंगे । और राहील तुम बिना किसी देर किए अभी तुरन्त हमारे साथ भाग चलो, जब तक कि तुम्हारे अब्बा को पता चल सके हम दोनों भाग चलते हैं, पड़ोस के देश में । मोहब्बत की बन्धन में लोग कुछ इस प्रकार अंधे हो जाते हैं कि उन्हें खुद के संसार के अलावा कुछ नहीं दिखता । यहीं इस समय राहील के साथ हुआ, इतना बड़ा आघात सहने के बाद भी वह मारकस के साथ भागने को तैयार हो जाती है लेकिन तभी उसके अब्बा को यह पता चल जाता हैं और वह दोनों के पास आ जाता है । पहले तो वह इस अंतरजातीय विवाह के लिए तैयार नहीं होता मगर अपनी बेटी की जिद और उसके प्रेम की पराकाष्ठा को देखते हुए उसे झुकना पड़ता है लेकिन यहाँ उसने एक शर्त रखा की, मैं मारकस के हाथ में तुम्हारा हाथ तभी दूँगा, जब मारकस अपना धर्म परिवर्तन कर के यहूदी धर्म को स्वीकार करेगा ।जो मारकस साफ़ इनकार कर देता हैं, कहता है , मैं मोहब्बत के लिए सबकुछ छोड़ सकता हूँ, मगर अपना ईमान नहीं छोड़ सकता । फिर मारकस दुःखी मन से ही राहील से विदा लेकर, लौटता है, और फिर कहता है, कल मेरी शादी होनी है । राहील आवेश में आ जाती है, तुमने इतना बड़ा झूठ बोला हमसे । फिर अपने किस्मत पर रोने लगती है । मारकस उससे कहता है, हो सके तो मुझे भूल जाना, मेरी सूरत को भूल जाना, और इस दग़ाबाज़ी को मांफ कर देना । इसपर राहील और उत्तेजित होकर कहती है, मेरा पूरा संसार उजाड़ कर तुम अपना घर बसाने चले हो, मैं ऐसा नहीं होने दूँगी । मैं तुम्हारी शादी हरगिज़ नहीं होने दूँगी । मारकस बहुत ही कठोर शब्दों में, मानो राहील के अब्बा द्वारा ठुकराया दिल पर उसने पत्थर बांध कर अब राहील को ठुकरा रहा हो । और शायद भगवान को भी यहीं पसन्द हो कि किसी निश्छल और पाक दिल को दिल्लगी की सज़ा तो मिलनी ही चाहिए । मारकस तब जाकर कहता है, तुम मेरी शादी कैसे भी नहीं रोक सकती, क्योंकि मैं रोम का होने वाला सम्राट हूँ, और मेरी शादी किसी के रोकने से नहीं रुक सकती । यहाँ पर लेखक ने प्रेम के ऊपर अहंकार का, अपने बड़े होने का बोध कराते हुए तत्कालीन समाज के तरफ इशारा करता है, जहाँ राजा अपने हिसाब से प्रजा के लिए कानून बनाती थी । लेकिन राहील ने भी कसम खाई कि अगर मेरा संसार तूने उजाड़ दिया तो मैं किसी भी हाल में तुम्हारा घर बसने नहीं दूँगी ।
              अगले दिन इन सब बातों से अंजान बूढ़ा अज़रा डैसिया द्वारा कहे गए हार को लेकर जब दरबार मे जाता है तो उसकी आवाज सुनकर ही बादशाह बोलता है कि इस मनहूस यहूदी की आवाज आई है, अब जरूर कुछ न कुछब अशुभ होगा । इस माध्यम में आग़ा हश्र कश्मीरी उस समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों पर चोट करते हुए ब्रूटस को इस बात का आवाज़ बनाते है कि शुभ अशुभ जैसा कोई चीज़ नहीं होता , लेकिन बादशाह मानने को तैयार नहीं हो रहा था, वह धर्म और अधर्म के बंधन में जकड़ा हुआ लगातार एक ही बात कह रहा था कि पहले मन्दिर में इसकी पूजा करके इसे पाक बनाओ फिर यह हार किसी के गले में पहनाया जाएगा । अज़रा के लाख कहने पर कि हम आपके वफ़ादारों में से एक है, हम तो आपकी सलामती का दुआ करते है बादशाह उसपर क्रोधित हो जाता है, और उसे बाहर जाने का हुक़्म देता हैं, लेकिन तभी राहील का न्याय के दरबार में इस शादी को उसका न्याय होने तक के लिए रोकने का गुहार लगाते आती है । बादशाह उसकी समस्या सुनते है तथा मारकस से भी अपना स्पष्टीकरण मांगा मगर मारकस में सच को स्वीकार करते हुए सजा स्वीकार करने के लिए हामी भर दी । यहाँ पर ईमान के ऊपर प्रेम की जीत है, और क्रोध पर प्रेम के इस जीत का एक अनूठा संगम देखने को मिल रहा है । राजा यहाँ पुत्र मोह के साथ साथ न्याय के बंधन में बंधा हुआ खुद को बहुत ही ठगा महसूस कर रहा है । लेकिन मुंशी प्रेमचंद के पंच परमेश्वर कहानी की तरह ही यहाँ भी बादशाह अपने पुत्र मोह से विरक्त होकर एक इंसाफ़ करने की ठानता है और सजा के लिए अलग तारीख़ मुक्करर कर देता है ।
        राहील को अब वो दुःख अंदर ही अंदर खाये जा रही है कि आखिर सजा तो मेरे प्रेमी को ही मिलेगी । लेकिन मिले भी क्यों नहीं, उसने मेरा दिल तोड़ा और दिल तोड़ने वालों की तो यहीं सजा होनी चाहिए । अच्छा हुआ जो भी हुआ, इसी ऊहापोह में डूबी राहील घर मे तेजी से टहल रही है तभी डैसिया  आकर राहील से अपने होने वाले शौहर की जान की भीख माँगती है और उसके बदले कुछ भी करने को तैयार हो जाती है । अगले दिन दरबार लगता है और यहाँ राहील उस दिन की सारी घटना को झूठा बताते हुए सारा इल्जाम अपने ऊपर लेकर अपने प्रेमी की रक्षा करती है । यहाँ एकबार फिर नारी का वह स्वरूप देखने को मिलता है जो सर्वत्र देखने को मिलता है  ।  चूंकि उस दिन की घटना को गलत बताने के कारण राहील और उसके बाप को सजा सुनाई जाती है, तभी अज़रा एक बात बताता है ,जिससे ब्रूटस के पैरों तले जमी खिसक जाती है । जिस राहील को अभी ब्रूटस ने सजा-ए-मौत सुनाई थी, वह कोई और नहीं, उसी क्रूर ब्रूटस की बेटी थी जिसको घर में आग लगने से मरी मानकर उसे भूल चुका था, उसी में आग में ब्रूटस की पत्नी का जलकर मौत हो जाती है लेकिन अज़रा बे अपने जान की बाज़ी लगाकर उस छः माह की लड़की को उठा ले जाता है, उसका लालन-पालन करता है ।
         अंत में सभी सुखांत नाटक की भाँति इसका भी अंत राहील और डैसिया दोनों की शादी मारकस से करा दी जाती है ।

उपलब्द्धियाँ :- इस नाटक के माध्यम से आग़ा हश्र कश्मीरी ने तत्कालीन समाज का जो चित्र खींचने का प्रयास किया है वह बहुत हद तक सफल भी हुए है, यह नाटक प्रेम की जीत पर आधारित एक कालजयी नाटक है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आज से भी देखने को मिलता है । आज भी हमारे समाज में अंतरजातीय विवाह, प्रेम विवाह को लोग सही नहीं मानते है और समाज के इस कुरीति पर कुठाराघात करता यह नाटक सच में एक सफल और मंझे हुए लेखक को प्रदर्शित करता है, जिसपर 40 के दशक में बनी फ़िल्म 'यहूदी' हिट साबित हुई थी । आज के दौर में जब नाटक और फ़िल्म में अश्लीलता अपनी पैठ जमा रहा है वहाँ पर यह नाटक एक सभ्य समाज के नाटक के तौर पर खुद को प्रतिष्ठित करता है और समाज को एक सकारात्मक दिशा देता है ।

खामियाँ :- इस नाटक के मुख्य खामियों में से एक है उर्दू का अत्यधिक प्रयोग जो इसे आम जनता से थोड़ा दूर ले जाती है क्योंकि आज की जनता उर्दू को उस दृष्टि से देखती है जैसे मुगल संस्कृत को देखते थे । आज समाज की एक धारणा बन चुकी है कि उर्दू केवल मुसलमान ही सीखेंगे जिससे यह नाटक को समझना थोड़ा मुश्किल है । इस नाटक में कविता के अत्यधिक जोर से यह न तो एक गेय नाटक है ना ही यह एक सामान्य नाटक है जिसमें पात्र संवाद करते है । इस वजह से इसको अभिनीत करने में लय के बिगड़ जाने और संवाद को भूलने का सर्वाधिक डर रहता है ।

                                  उज्ज्वल कुमार सिंह
                                       हिंदी विभाग
                               काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

Comments

  1. आला दर्जे का समीक्षा उज्जवल भईया♥️

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  2. नया पाठक होने के नाते मेरी ईच्छा थी कि नाटक के सभी पात्रों का परिचय शुरू में हो जाता।
    लगे हाँथ हम भी नाटक पढ़ ही लेते हैं।

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  3. अत्यन्त उत्तम ढंग से आपने समीक्षा की है।
    इसके आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  4. Bahut zayada spast nahi Kiya Gaya hai
    Lekhan ki bahut c trutiyan hain jisse confusion create ho raha

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद बड़े भैया, बड़े ही शानदार ढंग से आपने समीक्षा प्रस्तुत की है।
    हमारी मदद करने के लिए, भगवान आपको सदैव ऐसे लिखने की प्रेणना देते रहें।
    🙏😊🙏

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  6. बहुत प्रशंसनीय प्रयास

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