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माली और गुलाब

माली ने तोड़ दिया
खिला हुआ गुलाब
काँटों ने रोका भी
लेकिन उसे किसी और को
चढ़ाने का मन था
लेकिन गुलाब का किसी को
चढ़ना पसन्द नहीं
इसीलिए बिखेर दिए अपने
सभी पंखुड़ियों को
तोड़ दिए सपने
अपने खिलने का
महकने का
चमकने का
और सोई गई आशा
किसी ढ़लती शाम सी
फिर भी माली निर्मोही था
छोड़ा नहीं उसे उस हाल में भी
कुचल दिया पैरों के तले
ताकि वह मचल न सकें
पुनः कभी दमक न सकें

वह माली कभी संकट में हो
तो क्या गुलाब चढ़ेगा उसपर
या लुटाकर अपनी हस्ती
बचा लेगा अपने माली को
जिसने उसे सींचा था कभी
या लेगा कुचले जाने का बदला
उस निर्मोही से

जीना तो उसी ने सिखाया था
एक बात मोहब्बत की
सिखाया था उसने
काँटों के बीच मुस्कुराने की
कला सिखाया था उसने
मुस्कुराना जीवन में
सिखाया था  उसने
मोहब्बत में जीना
सिखाया था उसने

                                     उज्ज्वल कुमार सिंह
                                          हिन्दी विभाग
                                 काशी हिन्दू विश्वविद्यालय


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