आज सुबह सवेरे जीवन के
किसी ने कहा, मैं तुम्हें शाम लिखूँ
मगर असमंजस में था कौन सी शाम
जीवन की शाम, या शाम का जीवन
दोनों ही ढल जाते हैं एकाएक
बिना किसी पूर्व सूचना के
या यूं कहें, हमें इशारे समझ न आते
शाम भी करती हैं इशारे ढलने से पहले
तुमने भी किया था, बदलने से पहले
मगर........ मैं
समझा नहीं, समय रहते
एक ढली तो रात हो गई
एक के ढलते बरसात हो गई
बारिश में भींगे, हम तुम
उस शाम की तरह
जब होकर भी नहीं थी
या कहें तो
पास थी मगर
केवल यादों में सिमटी हुई
एक ख़्वाब की तरह
जो अधूरी होकर भी पूर्ण थी
बस किसी तरह से ढलती रहें यह शाम
मन करता है लिख दूँ तुझे
मणिकर्णिका का वह शाम
जहाँ खुद को विलीन किया था
तेरे लिए
जो लेकर मुझे
विदा हो गई मुझसे
खुद में
खुद की दुनिया में
जो नजरों के सामने भी मैं
नजरअंदाज हूँ तुमसे
उज्ज्वल कुमार सिंह
हिन्दी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
किसी ने कहा, मैं तुम्हें शाम लिखूँ
मगर असमंजस में था कौन सी शाम
जीवन की शाम, या शाम का जीवन
दोनों ही ढल जाते हैं एकाएक
बिना किसी पूर्व सूचना के
या यूं कहें, हमें इशारे समझ न आते
शाम भी करती हैं इशारे ढलने से पहले
तुमने भी किया था, बदलने से पहले
मगर........ मैं
समझा नहीं, समय रहते
एक ढली तो रात हो गई
एक के ढलते बरसात हो गई
बारिश में भींगे, हम तुम
उस शाम की तरह
जब होकर भी नहीं थी
या कहें तो
पास थी मगर
केवल यादों में सिमटी हुई
एक ख़्वाब की तरह
जो अधूरी होकर भी पूर्ण थी
बस किसी तरह से ढलती रहें यह शाम
मन करता है लिख दूँ तुझे
मणिकर्णिका का वह शाम
जहाँ खुद को विलीन किया था
तेरे लिए
जो लेकर मुझे
विदा हो गई मुझसे
खुद में
खुद की दुनिया में
जो नजरों के सामने भी मैं
नजरअंदाज हूँ तुमसे
उज्ज्वल कुमार सिंह
हिन्दी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
बहुत बढिंया
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मिशिर जी
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