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अंधेरे रहस्य (भाग 5)

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                                   भाग 5
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राजू चाचा से सबकुछ बताने के बाद किसी समाधान की उम्मीद में इस तरह बैठा था जैसे किसान बादल के इंतजार में, प्यासा पानी के इंतजार में, प्रेमी प्रेमिका के इंतजार में, चकोर चाँद के इंतजार में, विरहिणी पिया के इंतजार में । उसे पूरा विस्वास था कि इस समस्या का समाधान जरूर होगा और कैसे भी करके उसे बाहर निकाल ही लेंगे ।
     इधर राजू चाचा शायद रवि के व्यवहार पर अंदर ही अंदर हँस रहे होंगे कि क्या मूर्ख लड़का हैं, तभी तो उनके जबाब ने रवि के उम्मीद को सातवें आसमान से पाताल लोक में फेंक दिया । कहाँ उम्मीद थी कि इस चक्रव्यूह से बचा लेंगे लेकिन जबाब उनका कुछ और ही था ।

राजू :- अरे बुड़बक, जब लड़की सामने से ऑफर दे रही हैं तो तू पीछे भाग रहा है । अरे अब तेरी उम्र हो गई है, अब तू जवान हो रहा है ।
रवि :- चाचा, आप यह क्या बोल रहे हैं ? आपको अंदाजा भी हैं यह मुझपर और मेरे कैरियर पर कितना बड़ा भारी पड़ेगा ? मैं बर्बाद हो जाऊँगा ।
राजू :- तब यह बात तो दोस्ती करने से पहले सोचना चाहिए था न, अब क्या पछता रहे हो ? जानते नहीं हो, वह "गुनाहों का देवता" की सुधा नहीं है कि वह तुमसे अपने दिल की बात न बताकर किसी और क साथ हो जाना पसंद करें । अगर उसके प्रेम के कारण तुम उसके भगवान हो तो वह किसी भी हालत पर तुम्हें खोना नहीं चाहती और हर हाल में वह तुम्हें पाना चाहती हैं ।
रवि :- चाचा, आपका बहुत बहुत शुक्रिया, जो आपने इतना ज्ञान दिए और साथ ही साथ आपका यह ज्ञान आपको ही मुबारक । मैं बचना चाहता था आप तो उसमें और धकेल रहे है  .....
राजू :- तुम समझ नहीं रहे हो, तू कितनी भी अपनी सफाई देगा किसी को, अगर कोई इल्ज़ाम वह लगा दे तो कोई तेरी बात न मानेगा । सब कोई यहीं कहेगा कि जरूर तुमने ही कुछ किया होगा ।
रवि :- तो क्या मैं इससे बचने का कोई उपाय न करूँ, हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूँ ।
राजू :-  देख वह है जात की नाई, तुम भूमिहार, तुमदोनों की शादी तो होगी नहीं किसी भी हाल में....। समझ रहे हो न....  तो जब गंगा बह ही रही हैं तो हाथ धो लो तुम भी । हम तो होते तो अबतक कांड हो गया होता ।
रवि :- आप नहीं हो न, मेरे इसमे से निकलने का रास्ता बता सकते हैं तो बताइए, न तो मैं चला अपने रास्ते ।
राजू :- रवि, तू समझ क्यों नहीं रहा ।
रवि :- "बन्द कीजिये अपना प्रवचन ....." इतना कहते हुए वह उठ कर चल देता है । पानी का स्त्रोत देखकर प्यासा पास तो गया, लेकिन पता चला यह तो समंदर है । यहाँ प्यास नहीं बुझती, अपितु मन में बेचैनी और आने वाले दिन का परिणाम से भयाक्रांत होकर रवि मायूस होकर लौट आता हैं । अब उसके दुःख में सहायता एक आदमी का ही सुझाव ही काम आ सकता हैं ।
       अगले दिन कोचिंग के लिए निकलने से पहले रितिक को कॉल करने की सोच कर फोन उठाता है तो उसमें बैलेंस नदारद ।  अपने किस्मत पर झल्लाता हाथ पैर पटकता, और गुस्से से तमतमाये बाहर निकलता है । साली, अपनी किस्मत भी बेगारी करती है, नाजुक वक्त पर ही धोखा देती हैं, चलो कोई नहीं, कोचिंग में ही रितिक से बात करूँगा ।
       शाम ढ़ल चुकी है, और सूरज अपने विश्रामालय के तरफ जा रहे और उसी के साथ रवि की जिंदगी भी जा रही है, एक अंधेरे गुफ़ा में जहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं दिख रहा । जिंदगी के सभी रास्ते एक ही गुफा में आकर अपना दम तोड़ते नजर आ रहे हैं । देखो सारे लड़के कितने खुश हैं, उनके जीवन में किसी तरह का कोई व्यवधान नहीं, किस्मत मेरे साथ ही ऐसा खेल क्यों खेल रही । तभी दूर से रितिक आता दिखता है तो डूबते को एक तिनका नजर आई, लेकिन वह भी दूर है, वहाँ तक तैर कर ही जाना होगा, पानी कितना गहरा है, कुछ पता नहीं । लेकिन जीवन की आस में मरता क्या न करता । रितिक के पास जाकर रवि ठहर जा जाता है और एक लंबी साँस छोड़ता है, जैसे वर्षों बाद उसे साँस में साँस आई हो । हाँफते हुए वह केवल एक शब्द बोल पाता है, "रितिक" फिर सहसा रुक जाता हैं ।
रितिक :- क्या हुआ भाई, क्यों परेशान हो ?
रवि :- भाई मुझसे ये सब नहीं हो पायेगा, प्लीज् मुझे मांफ कर देना ।
रितिक :- क्या नहीं हो पाएगा और किसलिए मुझसे माँफी माँग रहे हो ।
रवि :- वो प्रीति से दोस्ती मैं नहीं निभा सकता ।
रितिक :- क्यों क्या हो गया ?
रवि :- कल मुझे बुलाई थी विज्ञान पढ़ाने के लिए, मैं आया तभी घबड़ा रहा था, ऊपर से उसने आरती से बोल कर उसके कमरे में पढ़ाने को बोला तो वहाँ जब मैं पढ़ा रहा था तो उसने मुझे गलत इरादे से टच किया । मैं जब उसको मना किया तो कहने लगी 'मैं तुमसे प्यार करती हूँ, मेरी बात मान जाओ और मेरे साथ रहो नहीं तो मैं शोर करूँगी कि तुमने मेरे साथ छेड़खानी की हैं ।'
रितिक :- तो क्या दिक्कत है भाई तुम्हें, मैं उसके पीछे कई महीनों से पड़ा हूँ, और तुझे वह सामने से प्रोपोज कर रही तो तेरे से नहीं होगा ।
रवि :- भाई, यह मेरे बस का नहीं हैं ।
रितिक :- चल, तू प्यार कर, कांड मैं कर लूंगा, उसी से डर रहा है न तू ।
रवि :- तमीज से बात कर, किसी के बारे में तू ऐसे कैसे बोल सकता हैं ।
रितिक :- भाई देख, तेरे जैसा नखरा नहीं आता मुझे । मेरे तो मानना है, लड़की मिली उसे करीब लाओ फिर उसका हें हें हें करो, फिर छोड़ दो ।
रवि :- कितनी घटिया सोच हैं तेरी... ।  तूने तो लड़की को उपभोग की वस्तु समझ रहा है ।
रितिक :- तो उससे ज्यादा वह कुछ होती भी नहीं......
रवि :- खामोश , अब अगर एक भी शब्द बोला तो तेरी दाँत तोड़ दूंगा । तुम्हें बुलाया था कि उसके दोस्त हो तुम, उसे समझाओ, कि यह नहीं हो सकता  लेकिन तू तो गन्दी नाली के कीड़े से भी गन्दा निकला । भाग जा, और नजर मत आना फिर मेरे सामने ।
        इस प्रकरण के बाद रवि, मायूस होकर यहीं मान बैठा कि उसकी कहानी कोई सुनने वाला नहीं, और न ही उसके पास इससे निकलने का कोई रास्ता मालूम है, अच्छा होगा कि जो हो रहा है होने दे । जिन्दगी तो बर्बाद हुई ही है, वह दोनों तरफ से होगी । इस दलदल में हाथ पाँव मारना ही बेकार ।

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