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भाग 4
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घर आने के बाद से जीवन में एक इतने बड़े झूठ को सबसे छुपाने की चुनौती के साथ-साथ इस झूठ को भी छिपाने की चुनौती बन गई । इतना उदास और खुद को इतना शर्मिंदा महसूस करने लगा कि जो हमेशा अपनी हँसी मजाक के लिए गाँव भर में मशहूर था, अब वह देखने को न मिलती । गाँववाले भी कई दफा घर पर यह पूछ चुके कि आजकल रवि बेटा नहीं दिख रहा । तबियत वगैरह तो ठीक है न उसकी ? दादाजी की आवाज आती है कमरे से , बेटा रवि, बाहर आओ देखो तुमसे मिलने कौन आया है ।
इतना सुनते ही रवि के चेहरे पर परेशानी के बादल घिर आये, पता न कौन आ गया ? इतने उदास मन से किससे मिलने जाउँ, कैसे अपना दर्द छिपाऊँगा ? कोई अज़नबी होगा तो कैसे उसके सामने मुस्कुरा पाउँगा । नहीं, मैं यह सब नहीं कर सकता । मैं बाहर नहीं जाऊँगा ।
बाहर दादाजी और पड़ोस के ही एक बुजुर्ग, रिश्ते में वो भी दादाजी ही लगेंगे, बातें कर रहे है । विप्लव (पड़ोस वाले दादाजी ) कहते है " जान जाइ ए मास्टर साहब,( दादाजी भी एक भूतपूर्व शिक्षक है और पड़ोस के दादाजी भी एक भूतपूर्व शिक्षक ) कि रवि जवन बा, बहुत होनहार लड़िका बा । पढ़े में ओतने तेज जेतना बदमाशी में, रोज हमरे पास आवत रल, आई बइठि हमरा पास, आ कहीं कि 'बाबाजी, आज पढ़त रनी ह त ई दिक्कत आइल ह, अब लिख के धइले बानी, कल जा के स्कूल में पुछेम' । जान जाइ के एतना सुन के मन गदगद हो जाला, कव बार त हम ओकरा के ओकर सवाल बता देनी त अइसे खुश होला की मत पूछी ।"
दादाजी :- जी, सब लोग इहे बात करें ला, हमार मन ह एकरा के वक़ालत पढ़ाई ।
विप्लव :- ना हो, ई गलती कबो मत करिह, ओकर जवन पढ़े के मन होइ तवने पढईह ।
दादाजी :- जी, उ त बड़ले बा । आख़िर पढ़े के त ओकरे बा ।
विप्लव :- हाँ । अभी तक बचवा आएल ना ।
दादाजी :- रवि , जल्दी आओ बाबू
रवि एकदम भारी मन से, अब निकलता है कि बिना निकले अब जान बचने वाली नहीं हैं । रवि :- "हाँ दादाजी आया, बस 5 मिनट में ।" फिर अपने कमरे से निकल कर घर मे अंदर जाता है औऱ अपने आंसू को धोकर बाहर निकलता हैं । दोनों बुजुर्गों से आशीर्वाद लेकर वहीं सिर झुकाए खड़ा हो गया ।
विप्लव :- क्या हुआ बेटा, आजकल दिखाई नहीं दे रहे । 4-5 दिन से नहीं आये तुम तो दादी कहने लगी कि कहीं उसका तबियत तो खराब नहीं है न, जाइये देख आइये ।
बच्चों के न दिखने पर हाल चाल पूछने आने की चलन अब केवल गांवों में बचीं हैं, अपितु यह कहे कि यह भी धीरे धीरे खत्म हो रहा तो कहीं से भी अनुचित नहीं होगा ।हमारे गाँवों को और गाँव की संस्कृति को शहर धीरे-धीरे निगल रहा है और बहुत जल्दी ही भारत से ग्राम्य जीवन का अंत होता भी दिख रहा है । जहाँ एक तरफ गाँवो में मानवीय संवेदना आज भी जिंदा है, तो शहर एक निर्जीव और शिथिल जीवन बन चुका है, जहाँ किसी को किसी से कोई खास मतलब नहीं होता । सब अपने मतलब के लिए कुछ भी करने को तैयार होते है । शहर उस जगह का नाम है जहाँ बुजुर्ग को घर मे पनाह नहीं मिलती और कुत्ते वातानुकूलित कमरे में रहते है । जिस माता पिता ने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया, उसे शिक्षा दीक्षा दी, वहीं इनके लिए अब अछूत हो जा रहा है । कुत्ते के साथ घुमने के लिए पर्याप्त समय है परन्तु बुजुर्गों के हाल चाल पूछने तक का समय नहीं शहर के पास । वहीं गाँवों में आज भी बुजुर्गों का सम्मान होता है और कोई भी काम करने से पहले उनसे मशवरा जरूर किया जाता कारण की उन्होंने इस जीवन को करीब से बहुत पहले देख रखा है ।
रवि :- नहीं, परीक्षा करीब है, इसलिए अब बाहर निकलना कम कर दिया हूँ ।
विप्लव :- लेकिन इतने उदास क्यों हो ?
रवि :- "नहीं दादाजी । ऐसी कोई बात नहीं है ।" एक ज़बरदस्ती मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेरते हुए उत्तर दिया ।
विप्लव :- देख बेटा, कोई भी दिक्कत हो तो हमें बताओ, हमें मालूम है कि तुम्हें कुछ परेशानी है ।
रवि :- नहीं दादाजी, सच में कोई परेशानी नहीं हैं ।
विप्लव :- ठीक है, खूब पढ़ाई करो । हमलोग का नाम रौशन करो ।
यह सुनते ही रवि की आँखे छलछला उठी, लेकिन आँखों को संभालते हुए वह जल्दी से अंदर जाता हैं और दरवाजा बंद कर के अपने आप को कोसता हैं कि आज एक झूठ को छिपाने के लिए कितने झूठ बोलने पड़ रहे । लेकिन सच कहें तो किस मुँह से, आखिर इतना हिम्मत लाये कहाँ से ? इन सब से इतना टूट चुका हूँ कि किसी को बताऊँगा भी तो लोग मुझे ही डाँटेंगे ।।
सबकी डाँट सुन लूँगा, लेकिन आज सबकुछ बता दूँगा, नहीं, मैं नहीं बता सकता । नहीं तो मुझे कोचिंग जाने से मना कर देंगे और वह इस बात का हाय तौबा मचा देगी । किस दुविधा में फँस गया हूँ ? हाय मैं मर क्यों नहीं जाता ?
चलो कल शाम को सारी बाते राजू चाचा को बताऊँगा, वह हमलोग के उम्र के हैं, अपनी सबकुछ बताते हैं । मैं उनके साथ सहज हूँ, उनसे बता सकता हूँ ।
अगले दिन शाम के समय मैदान में बच्चे खेल रहे है, लेकिन जिंदगी जो खेल खेल रही उससे एक जिंदगी इस तरह हर चुकी है कि यह सब खेल बकवास लग रहा हैं । राजू चाचा को बुलाकर मैदान के कोने में चलने का इशारा करते हुए वह खुद मैदान के दूसरे छोर पर चला जाता हैं ।
राजू :- हाँ, रवि ! क्या हुआ है तुम्हें ? तबियत ठीक है न तेरी ।
रवि :- हाँ चाचा ।
राजू :- तो इतना परेशान क्यों हो ?
रवि :- "चाचा जी", इतना कहते ही वह फुट फुट के रो पड़ता हैं और अपना सर चाचा जी के कंधे पर रख देता हैं ।
राजू :- क्या हुआ है बाबू ? किसी ने कुछ बोला है क्या ?
रवि :- "कैसे बताऊँ"
राजू :- जो भी खुल कर बताओ, प्रॉमिस किसी को नहीं बताऊँगा ।
रवि उनको सारा कुछ बताता है ।
भाग 4
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घर आने के बाद से जीवन में एक इतने बड़े झूठ को सबसे छुपाने की चुनौती के साथ-साथ इस झूठ को भी छिपाने की चुनौती बन गई । इतना उदास और खुद को इतना शर्मिंदा महसूस करने लगा कि जो हमेशा अपनी हँसी मजाक के लिए गाँव भर में मशहूर था, अब वह देखने को न मिलती । गाँववाले भी कई दफा घर पर यह पूछ चुके कि आजकल रवि बेटा नहीं दिख रहा । तबियत वगैरह तो ठीक है न उसकी ? दादाजी की आवाज आती है कमरे से , बेटा रवि, बाहर आओ देखो तुमसे मिलने कौन आया है ।
इतना सुनते ही रवि के चेहरे पर परेशानी के बादल घिर आये, पता न कौन आ गया ? इतने उदास मन से किससे मिलने जाउँ, कैसे अपना दर्द छिपाऊँगा ? कोई अज़नबी होगा तो कैसे उसके सामने मुस्कुरा पाउँगा । नहीं, मैं यह सब नहीं कर सकता । मैं बाहर नहीं जाऊँगा ।
बाहर दादाजी और पड़ोस के ही एक बुजुर्ग, रिश्ते में वो भी दादाजी ही लगेंगे, बातें कर रहे है । विप्लव (पड़ोस वाले दादाजी ) कहते है " जान जाइ ए मास्टर साहब,( दादाजी भी एक भूतपूर्व शिक्षक है और पड़ोस के दादाजी भी एक भूतपूर्व शिक्षक ) कि रवि जवन बा, बहुत होनहार लड़िका बा । पढ़े में ओतने तेज जेतना बदमाशी में, रोज हमरे पास आवत रल, आई बइठि हमरा पास, आ कहीं कि 'बाबाजी, आज पढ़त रनी ह त ई दिक्कत आइल ह, अब लिख के धइले बानी, कल जा के स्कूल में पुछेम' । जान जाइ के एतना सुन के मन गदगद हो जाला, कव बार त हम ओकरा के ओकर सवाल बता देनी त अइसे खुश होला की मत पूछी ।"
दादाजी :- जी, सब लोग इहे बात करें ला, हमार मन ह एकरा के वक़ालत पढ़ाई ।
विप्लव :- ना हो, ई गलती कबो मत करिह, ओकर जवन पढ़े के मन होइ तवने पढईह ।
दादाजी :- जी, उ त बड़ले बा । आख़िर पढ़े के त ओकरे बा ।
विप्लव :- हाँ । अभी तक बचवा आएल ना ।
दादाजी :- रवि , जल्दी आओ बाबू
रवि एकदम भारी मन से, अब निकलता है कि बिना निकले अब जान बचने वाली नहीं हैं । रवि :- "हाँ दादाजी आया, बस 5 मिनट में ।" फिर अपने कमरे से निकल कर घर मे अंदर जाता है औऱ अपने आंसू को धोकर बाहर निकलता हैं । दोनों बुजुर्गों से आशीर्वाद लेकर वहीं सिर झुकाए खड़ा हो गया ।
विप्लव :- क्या हुआ बेटा, आजकल दिखाई नहीं दे रहे । 4-5 दिन से नहीं आये तुम तो दादी कहने लगी कि कहीं उसका तबियत तो खराब नहीं है न, जाइये देख आइये ।
बच्चों के न दिखने पर हाल चाल पूछने आने की चलन अब केवल गांवों में बचीं हैं, अपितु यह कहे कि यह भी धीरे धीरे खत्म हो रहा तो कहीं से भी अनुचित नहीं होगा ।हमारे गाँवों को और गाँव की संस्कृति को शहर धीरे-धीरे निगल रहा है और बहुत जल्दी ही भारत से ग्राम्य जीवन का अंत होता भी दिख रहा है । जहाँ एक तरफ गाँवो में मानवीय संवेदना आज भी जिंदा है, तो शहर एक निर्जीव और शिथिल जीवन बन चुका है, जहाँ किसी को किसी से कोई खास मतलब नहीं होता । सब अपने मतलब के लिए कुछ भी करने को तैयार होते है । शहर उस जगह का नाम है जहाँ बुजुर्ग को घर मे पनाह नहीं मिलती और कुत्ते वातानुकूलित कमरे में रहते है । जिस माता पिता ने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया, उसे शिक्षा दीक्षा दी, वहीं इनके लिए अब अछूत हो जा रहा है । कुत्ते के साथ घुमने के लिए पर्याप्त समय है परन्तु बुजुर्गों के हाल चाल पूछने तक का समय नहीं शहर के पास । वहीं गाँवों में आज भी बुजुर्गों का सम्मान होता है और कोई भी काम करने से पहले उनसे मशवरा जरूर किया जाता कारण की उन्होंने इस जीवन को करीब से बहुत पहले देख रखा है ।
रवि :- नहीं, परीक्षा करीब है, इसलिए अब बाहर निकलना कम कर दिया हूँ ।
विप्लव :- लेकिन इतने उदास क्यों हो ?
रवि :- "नहीं दादाजी । ऐसी कोई बात नहीं है ।" एक ज़बरदस्ती मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेरते हुए उत्तर दिया ।
विप्लव :- देख बेटा, कोई भी दिक्कत हो तो हमें बताओ, हमें मालूम है कि तुम्हें कुछ परेशानी है ।
रवि :- नहीं दादाजी, सच में कोई परेशानी नहीं हैं ।
विप्लव :- ठीक है, खूब पढ़ाई करो । हमलोग का नाम रौशन करो ।
यह सुनते ही रवि की आँखे छलछला उठी, लेकिन आँखों को संभालते हुए वह जल्दी से अंदर जाता हैं और दरवाजा बंद कर के अपने आप को कोसता हैं कि आज एक झूठ को छिपाने के लिए कितने झूठ बोलने पड़ रहे । लेकिन सच कहें तो किस मुँह से, आखिर इतना हिम्मत लाये कहाँ से ? इन सब से इतना टूट चुका हूँ कि किसी को बताऊँगा भी तो लोग मुझे ही डाँटेंगे ।।
सबकी डाँट सुन लूँगा, लेकिन आज सबकुछ बता दूँगा, नहीं, मैं नहीं बता सकता । नहीं तो मुझे कोचिंग जाने से मना कर देंगे और वह इस बात का हाय तौबा मचा देगी । किस दुविधा में फँस गया हूँ ? हाय मैं मर क्यों नहीं जाता ?
चलो कल शाम को सारी बाते राजू चाचा को बताऊँगा, वह हमलोग के उम्र के हैं, अपनी सबकुछ बताते हैं । मैं उनके साथ सहज हूँ, उनसे बता सकता हूँ ।
अगले दिन शाम के समय मैदान में बच्चे खेल रहे है, लेकिन जिंदगी जो खेल खेल रही उससे एक जिंदगी इस तरह हर चुकी है कि यह सब खेल बकवास लग रहा हैं । राजू चाचा को बुलाकर मैदान के कोने में चलने का इशारा करते हुए वह खुद मैदान के दूसरे छोर पर चला जाता हैं ।
राजू :- हाँ, रवि ! क्या हुआ है तुम्हें ? तबियत ठीक है न तेरी ।
रवि :- हाँ चाचा ।
राजू :- तो इतना परेशान क्यों हो ?
रवि :- "चाचा जी", इतना कहते ही वह फुट फुट के रो पड़ता हैं और अपना सर चाचा जी के कंधे पर रख देता हैं ।
राजू :- क्या हुआ है बाबू ? किसी ने कुछ बोला है क्या ?
रवि :- "कैसे बताऊँ"
राजू :- जो भी खुल कर बताओ, प्रॉमिस किसी को नहीं बताऊँगा ।
रवि उनको सारा कुछ बताता है ।
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