******************************************
भाग 2
-------------------------------------------------------------------
दोस्ती होने के बाद प्रीति और रवि अक्सर अब बातें करने लगे और रवि प्रीति को सामाजिक विज्ञान समझने में भरपूर मदद करता । इस दौरान दोनों धीरे-धीरे घुल मिल गए और एक दूसरे की खूब मदद करते ।
पीठ के पीछे चल रहे षडयंत्र से बेखबर रवि एक दोस्त को पाकर बहुत खुश था और साथ ही साथ थोड़ा अचंभित भी था क्योंकि आएं दिन उसके साईकल का पंचर होना या हवा निकल जाना सब बन्द हो गया हैं । क्या यह इस दोस्ती का परिणाम है या कुछ और भी, यह कहना तो काफी मुश्किल है और उससे भी मुश्किल है यह समझना कि आखिर क्यों एक निर्दोष लड़के को परेशान किया जा रहा था । क्या किसी से दोस्ती न करना या किसी से बातचीत न करना इतना बड़ा गुनाह हैं ?
प्रीति इन सब से अलग अपने मंसूबे को अलग ही तरह से साधने में जुटी हैं, वह रवि को किसी भी तरह अपने पाले में डालने की चेष्टा कर रही हैं । वह जानती हैं कि रवि अच्छा लड़का हैं और उसे अपने पाले में करना लोहे के चने चबाने जैसा है परंतु स्त्री का रूप लावण्य और उसका प्रेम ऐसा फंदा हैं जिसने कई महारथियों को धरासायी किया है । इस बात से प्रीति भली भांति परचित हैं, और स्त्री के सबसे मजबूत हथियार या यूं कहें तो स्त्री का ब्रह्मास्त्र होता हैं उनका आँसू और उसी के बाण से हमला होता हैं रवि पर ।
शनिवार का दिन प्रीति आती है और गुमसुम कोने में बैठ जाती हैं ।
रवि :- क्या हुआ, प्रीति ? उदास क्यों बैठी हो ?
प्रीति :- नहीं कुछ ।
रवि :- किसी ने कुछ कहा क्या तुमसे ?
प्रीति :- नहीं ।
रवि :- तो इसतरह क्यों बैठी हो ?
प्रीति :- बस ऐसे ही ।
रवि :- मुझे बताओ न । शायद मैं कुछ मदद कर सकूं ।
प्रीति :- मैं जानती हूँ इसमें तुम कुछ नहीं कर सकते ।
रवि :- बताओगी तब न , मैं तय करूँगा कि क्या कर पाउँगा, क्या नहीं ।
प्रीति :- परसों हमारे स्कूल में विज्ञान का टेस्ट हैं, और मैं कुछ नहीं पढ़ी हूँ ।
रवि :- तो इसमें कौन परेशान होने बात हैं । चलो निकालो अभी मैं बता देता हूँ ।
प्रीति :- नहीं, अब तो सर आने वाले है ।
रवि :- हाँ, ये भी हैं । यार मैं कुछ मदद न कर पाया इसका दुःख रहेगा ।
प्रीति :- रवि, तुम कल मिल के पढ़ा सकते हो ?
रवि :- नहीं यार, कल तो रविवार हैं, कोचिंग बन्द होती है । मैं कैसे आऊँगा ।
प्रीति :- घर पर बोल देना कल एक्सट्रा क्लास है, और प्लीज् आ जाना ।
रवि :- नहीं, मैं अपने घरवालों से झूठ नहीं बोल सकता । और अगर किसी को पता चल गया तो मुझे बहुत मार लगेगी ।
प्रीति :- प्लीज्, अगर कल के टेस्ट में फेल हो गई तो मुझे प्री बोर्ड परीक्षा का एडमिट कार्ड न मिलेगा ।
ऐसा धर्मसंकट आज से पहले कभी न आया था, एक तरफ अपना परिवार, जिससे कभी झूठ न बोला । दूसरे तरफ एक दोस्त के जीवन का सवाल । क्या करें कुछ समझ न आ रहा । सोचा, दादाजी से इसके बारे में पूछूँगा । लेकिन क्या कहूँगा, उसकी दोस्ती एक लड़की से हुई हैं, उसको दिक्कत है तो उसे पढ़ाने जाना है, और वह शक न करेंगे । नहीं, यह मैं नहीं कर सकता । दूसरे तरफ अगर फेल हो गई तो मुझे जिंदगी भर कोसेगी । एक पल को सोच लिया कि चलो, कोसेगी तो कोसने दो, क्या फर्क पड़ता हैं । मैं अपने घरवालों से झूठ न बोलूँगा । अच्छा बेटा, तू घर वालों से यह झूठ अभी तक न बोले कि तुम्हारी कोई दोस्त नहीं, और कोचिंग में 2 घण्टे की जगह तीन घंटे कब से पढ़ाई होने लगी जो तुम घर पर बताए हो । मित्र की परीक्षा कठिन समय में ही होती है, और शायद मेरे परीक्षा की घड़ी आ गई है, तैयार हो जा बेटा रवि । दोस्ती का इम्तेहान के लिए । इसी ऊहापोह में डूबा रवि पता न किस लोक में चला गया है । तभी प्रीति की आवाज इस घोर शांति को चीरती हुई बाहर निकलती है । प्रीति पूछती है :- क्या सोच रहे हो ? कल पढ़ा दोगे न प्लीज् ।
रवि :- (घबड़ाते हुए) "अरे, कल तो कोचिंग बन्द है इसलिए यह कमरा भी बन्द रहेगा, तो तुम्हें पढ़ाऊंगा कहाँ ?" यह एक उम्मीद की किरण ,जो शायद आखिरी किरण थी कि इससे प्रीति मान जाएगी और खुद से पढ़ेगी ।
प्रीति :- "मैंने आरती से बात कर ली है । वह अपना कमरा खोल देगी । यह मकान आरती की ही है, और यहाँ वह और उसके भाई अकेले रहते है । उसका भाई शाम को पढ़ने चला जाता है, और वह जिस समय जाता है उसी समय तुम आ जाना ।"
रवि :- यार, इस तरह से ठीक न है ।
प्रीति :- क्या चाहते हो ? मैं पास न होऊँ, फेल हो जाउँ, उसके बाद मेरे घरवाले मेरे क्या हाल करेंगे तुम समझते हो । प्लीज्, कैसे भी कर के मुझे परसों के टेस्ट के लिए पढ़ा देना ।
रवि :- ( अनमने ढंग से ) ठीक है, मैं आ जाऊँगा, तुम समय से आ जाना ।
रास्ते भर रवि सोचता रहा कि उसने सही किया या गलत । उसे कुछ नहीं मालूम । आज की रात कैसे गुजरेगी इसी सोच में वह घर पहुँचता हैं, और चुपचाप अपने कमरे में जाकर पढ़ने लगता है । आज मन किताबों में नहीं लग रहा । मन में अलग सी बेचैनी है । कल क्या होगा ? अगर घर पर किसी को पता चल गया तो क्या होगा ? इन्हीं सवालों से जूझते हुए रवि दादाजी के टेबल से गीता उठा कर पढ़ने लगता है और पढ़ते पढ़ते सो गया । खाने पीने की भी होश नहीं । रात भर अजीब अजीब सपनों में गोते लगाते हुए सुबह हो गई । अब दिन ढलने के इंतजार है ।
भाग 2
-------------------------------------------------------------------
दोस्ती होने के बाद प्रीति और रवि अक्सर अब बातें करने लगे और रवि प्रीति को सामाजिक विज्ञान समझने में भरपूर मदद करता । इस दौरान दोनों धीरे-धीरे घुल मिल गए और एक दूसरे की खूब मदद करते ।
पीठ के पीछे चल रहे षडयंत्र से बेखबर रवि एक दोस्त को पाकर बहुत खुश था और साथ ही साथ थोड़ा अचंभित भी था क्योंकि आएं दिन उसके साईकल का पंचर होना या हवा निकल जाना सब बन्द हो गया हैं । क्या यह इस दोस्ती का परिणाम है या कुछ और भी, यह कहना तो काफी मुश्किल है और उससे भी मुश्किल है यह समझना कि आखिर क्यों एक निर्दोष लड़के को परेशान किया जा रहा था । क्या किसी से दोस्ती न करना या किसी से बातचीत न करना इतना बड़ा गुनाह हैं ?
प्रीति इन सब से अलग अपने मंसूबे को अलग ही तरह से साधने में जुटी हैं, वह रवि को किसी भी तरह अपने पाले में डालने की चेष्टा कर रही हैं । वह जानती हैं कि रवि अच्छा लड़का हैं और उसे अपने पाले में करना लोहे के चने चबाने जैसा है परंतु स्त्री का रूप लावण्य और उसका प्रेम ऐसा फंदा हैं जिसने कई महारथियों को धरासायी किया है । इस बात से प्रीति भली भांति परचित हैं, और स्त्री के सबसे मजबूत हथियार या यूं कहें तो स्त्री का ब्रह्मास्त्र होता हैं उनका आँसू और उसी के बाण से हमला होता हैं रवि पर ।
शनिवार का दिन प्रीति आती है और गुमसुम कोने में बैठ जाती हैं ।
रवि :- क्या हुआ, प्रीति ? उदास क्यों बैठी हो ?
प्रीति :- नहीं कुछ ।
रवि :- किसी ने कुछ कहा क्या तुमसे ?
प्रीति :- नहीं ।
रवि :- तो इसतरह क्यों बैठी हो ?
प्रीति :- बस ऐसे ही ।
रवि :- मुझे बताओ न । शायद मैं कुछ मदद कर सकूं ।
प्रीति :- मैं जानती हूँ इसमें तुम कुछ नहीं कर सकते ।
रवि :- बताओगी तब न , मैं तय करूँगा कि क्या कर पाउँगा, क्या नहीं ।
प्रीति :- परसों हमारे स्कूल में विज्ञान का टेस्ट हैं, और मैं कुछ नहीं पढ़ी हूँ ।
रवि :- तो इसमें कौन परेशान होने बात हैं । चलो निकालो अभी मैं बता देता हूँ ।
प्रीति :- नहीं, अब तो सर आने वाले है ।
रवि :- हाँ, ये भी हैं । यार मैं कुछ मदद न कर पाया इसका दुःख रहेगा ।
प्रीति :- रवि, तुम कल मिल के पढ़ा सकते हो ?
रवि :- नहीं यार, कल तो रविवार हैं, कोचिंग बन्द होती है । मैं कैसे आऊँगा ।
प्रीति :- घर पर बोल देना कल एक्सट्रा क्लास है, और प्लीज् आ जाना ।
रवि :- नहीं, मैं अपने घरवालों से झूठ नहीं बोल सकता । और अगर किसी को पता चल गया तो मुझे बहुत मार लगेगी ।
प्रीति :- प्लीज्, अगर कल के टेस्ट में फेल हो गई तो मुझे प्री बोर्ड परीक्षा का एडमिट कार्ड न मिलेगा ।
ऐसा धर्मसंकट आज से पहले कभी न आया था, एक तरफ अपना परिवार, जिससे कभी झूठ न बोला । दूसरे तरफ एक दोस्त के जीवन का सवाल । क्या करें कुछ समझ न आ रहा । सोचा, दादाजी से इसके बारे में पूछूँगा । लेकिन क्या कहूँगा, उसकी दोस्ती एक लड़की से हुई हैं, उसको दिक्कत है तो उसे पढ़ाने जाना है, और वह शक न करेंगे । नहीं, यह मैं नहीं कर सकता । दूसरे तरफ अगर फेल हो गई तो मुझे जिंदगी भर कोसेगी । एक पल को सोच लिया कि चलो, कोसेगी तो कोसने दो, क्या फर्क पड़ता हैं । मैं अपने घरवालों से झूठ न बोलूँगा । अच्छा बेटा, तू घर वालों से यह झूठ अभी तक न बोले कि तुम्हारी कोई दोस्त नहीं, और कोचिंग में 2 घण्टे की जगह तीन घंटे कब से पढ़ाई होने लगी जो तुम घर पर बताए हो । मित्र की परीक्षा कठिन समय में ही होती है, और शायद मेरे परीक्षा की घड़ी आ गई है, तैयार हो जा बेटा रवि । दोस्ती का इम्तेहान के लिए । इसी ऊहापोह में डूबा रवि पता न किस लोक में चला गया है । तभी प्रीति की आवाज इस घोर शांति को चीरती हुई बाहर निकलती है । प्रीति पूछती है :- क्या सोच रहे हो ? कल पढ़ा दोगे न प्लीज् ।
रवि :- (घबड़ाते हुए) "अरे, कल तो कोचिंग बन्द है इसलिए यह कमरा भी बन्द रहेगा, तो तुम्हें पढ़ाऊंगा कहाँ ?" यह एक उम्मीद की किरण ,जो शायद आखिरी किरण थी कि इससे प्रीति मान जाएगी और खुद से पढ़ेगी ।
प्रीति :- "मैंने आरती से बात कर ली है । वह अपना कमरा खोल देगी । यह मकान आरती की ही है, और यहाँ वह और उसके भाई अकेले रहते है । उसका भाई शाम को पढ़ने चला जाता है, और वह जिस समय जाता है उसी समय तुम आ जाना ।"
रवि :- यार, इस तरह से ठीक न है ।
प्रीति :- क्या चाहते हो ? मैं पास न होऊँ, फेल हो जाउँ, उसके बाद मेरे घरवाले मेरे क्या हाल करेंगे तुम समझते हो । प्लीज्, कैसे भी कर के मुझे परसों के टेस्ट के लिए पढ़ा देना ।
रवि :- ( अनमने ढंग से ) ठीक है, मैं आ जाऊँगा, तुम समय से आ जाना ।
रास्ते भर रवि सोचता रहा कि उसने सही किया या गलत । उसे कुछ नहीं मालूम । आज की रात कैसे गुजरेगी इसी सोच में वह घर पहुँचता हैं, और चुपचाप अपने कमरे में जाकर पढ़ने लगता है । आज मन किताबों में नहीं लग रहा । मन में अलग सी बेचैनी है । कल क्या होगा ? अगर घर पर किसी को पता चल गया तो क्या होगा ? इन्हीं सवालों से जूझते हुए रवि दादाजी के टेबल से गीता उठा कर पढ़ने लगता है और पढ़ते पढ़ते सो गया । खाने पीने की भी होश नहीं । रात भर अजीब अजीब सपनों में गोते लगाते हुए सुबह हो गई । अब दिन ढलने के इंतजार है ।
Comments
Post a Comment