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बूढ़े बरगद बाबा

रविवार की सुबह, इसबार हमलोग के लिए किसी श्राप से कम न था । जब नींद खुली तब यह सुनने को मिला कि पता कितने पीढ़ियों की विरासत और गाँव का सबसे बुजुर्ग पीपल जिसे प्यार से सब बूढ़ा बरगद/ दादा कहते थे वह अपनी जगह पर नहीं था । न जाने कितने पक्षियों के और न जानें कितने लोगों के स्वप्न उजड़ गए, कितने लोगों का वसेरा उजड़ गया । उन चिड़ियों के चीख के कल्पना मात्र से कलेजा दहल जाता हैं लेकिन क्या उस कसाई को समझ न आया जिसने यह अत्याचार किया । अब इसे समय की गति का परिणाम कहे या सरकारी जिद का नतीजा कह पाना बहुत ही मुश्किल हैं, क्योंकि शायद अब बूढ़े बाबा की उम्र लड़ गई हो और उनकी मृत्यु इसी प्रकार निर्धारित हो, लेकिन बूढ़े बाबा की शाखाओं में तो अभी इतनी जान बाकी थी कि वह आने वाली पीढ़ियों को अपने गोद में खेलते देख कर प्रसन्नचित होकर अपनी छाया को दूना कर देते । जरूर यह सरकारी महकमे के जिद का कारण हैं, कि भले कुछ भी हो जाय सड़क एक इंच भी टेड़ी न होने पाय । याद आता है, आज से एक महीने पहले गाँव में एक पंचायत बैठी थी, जिसमें सबकी सहमति से एक बात तय हुआ कि हम सरकार से निवेदन करेंगे कि बूढ़े बाबा को छोड़ दिया जाय, और उसके बदले हमसे उसके बगल में जितना जमीन चाहिए लेकर अपना सड़क बनवा दीजिये । मंत्री जी भी ठेकेदार और उस अभियंता को यह बात समझाकर गए थे लेकिन हो सकता हैं, मंत्री जी इसी गाँव के थे तो इसमें उनका स्वार्थ भी यह जानकर महकमा पेड़ को रात के घुप्प अंधेरे में जेसीबी नामक राक्षस से नोचवा दिया । आज हम , हमारे जैसे लड़के और गाँव के सबसे बुजुर्ग रामभरन दादा एक तरह से बिलख रहे थे कारण भी एक ही, जिस के गोद में खेलकर हम बड़े हुए, जिनसे गाँव के हरलोग अपनी दुःख साझा करते थे, सोमी अमावस्या के दिन अपने दुःख के धागे लपेटकर उनसे सुख की चादर की मन्नत माँगा करते थे ।दादा जी से सैकड़ो बार यह कहानी सुना हूँ कि इस दादा की सैकड़ों हाथ आज तक टूट कर गिरे लेकिन आज तक किसी को खरोंच तक न आई । एक बार तो हमलोग ( दादाजी कहते हैं ) वहीं बैठे ताश खेल रहे थे तभी हमलोग के ऊपर की एक मोटी शाखा टूट गई, लेकिन गिरने से ठीक पहले एक करिश्मा हुआ, और शाखा के पुलंगी के तरफ कम वजन के वावजूद शाखा उसके सहारे नीचे गिरी और वह दूसरे तरफ पलट गई, हमलोग यह करिश्मा देखते रह गए । गाँव के ही सिरचन दादा कहते हैं, कि यह कोई पेड़ नहीं गाँव में साक्षात भगवान रहते थे, ये गाँव पर कोई आफ़त आने ही नहीं देते थे । किवदंती तो यह भी हैं कि किसी जमाने में हमारे गाँव में भी बहुत बाढ़ आया करती थी, उसी बाढ़ के बाद किसी बालक ने इस पीपल को सड़क के किनारे लगा दिया जो शायद 700 वर्ष की उम्र जी चुका था । और पेड़ लगने के बाद गाँव में कभी बाढ़ न आई, बल्कि नदी ने ही अपना रास्ता बदलकर गाँव से 5 किलोमीटर दूर से अपना प्रवाह बना लिया जो आज भी वहाँ मौजूद है । न जाने कितने लोगों के लिए प्राणवायु छोड़ने वाला यह पेड़ न जाने क्यों आज हमलोग से विदा ले गया । सुबह में उसपर आरी चलते देखा तो खून खौल गया, मैंने पूरे गाँव वालों को लेकर गए उन आरी चलाने को मारकर भगाया  लेकिन हमलोग के पास अब विलाप करने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता भी न है । मंत्रीजी भी आज आयें, पहली बार उनको नंगे पैर कोई देख सकता था, उनके हाथ में लाठी देखकर मेरा दिल दहल गया, कि आज सूरज पश्चिम में कैसे उगा । लेकिन शायद वह श्रद्धांजलि थी उस बूढ़े बाबा को जिसके गोद में मंत्रीजी न जाने दशकों नंगे घूमे होंगे और न जाने उसकी ममतामयी छाह में कबतक ताश खेले होंगे ।

         खैर पेड़ कट चुका, सरकारी महकमा जीत चुका है, लेकिन अभी भी इसका ज़बाब किसी के पास न मिला कि अब आगे क्या होगा, कौन इस बूढ़े बाबा की जगह लेगा । सदियों लग जाएं किसी को, लेकिन फिर भी मिले न मिले बूढ़े बाबा का उत्तराधिकारी ।
       जिस तरह पेड़ो की अंधाधुंध कटाई चल रही है उससे आने वाले 25-50 सालों में शायद यह कहानी सबकी जुबानी बन जाय , जो अभी केवल कल्पना पर लिखी गई है ।


     


                                              उज्ज्वल कुमार सिंह
                                                    हिंदी विभाग
                                          काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

Comments

  1. ओह ! एक विशाल धरोहर
    बड़ी पीड़ा हो रही है uj भाई।
    औऱ होती भी क्यों नहीं लेकिन क्या कहा जाय।
    बहुत ही मार्मिक लेखनि है आपकी।

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    Replies
    1. बस अब अपने धरोहरों के लिए प्रबुद्ध वर्ग को आगे आना होगा ।

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