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क्यों छठ पर्व नहीं, महापर्व हैं ।

भारत पर्व त्योहारों का देश कहा गया है और प्रत्येक त्योहार कहीं न कहीं प्रकति से जुड़ी है, हमारे यहाँ प्रत्येक ऋतु के बाद ऋतु पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है । इन्हीं पर्वों में से एक है, छठ । लेकिन छठ पर्व को पर्व नहीं, महापर्व कहा गया है, यह एकलौता ऐसा त्योहार है जिसे महापर्व कहा जाता है । यह बात अलग है कि यह उत्तर भारत का ही पर्व माना जाता है, और विश्व के जिस भी कोने में उत्तर भारतीय रहते है, वहाँ छठ की धूम एक अलग स्तर पर होती है ।
         किसी ने मुझसे पूछा कि छठ को पर्व क्यों नहीं कहते, इसे महापर्व कहने की क्या जरूरत पड़ी, या इसे महापर्व क्यों कहा जाता है ? मैंने उत्तर दिया, और वहीं आपसे साझा भी कर रहा हूँ, अगर आप सहमत होंगे तो अपने आशिर्वाद अवश्य देंगे ।
      दीपावली के ठीक पाँच दिन बाद, छठे दिन यह त्योहार मनाया जाता है, जबकि इसकी शुरुआत तो दीपावली के तीन दिन बाद ही, कार्तिक माह के शुक्लपक्ष चतुर्थी तिथि से शुरू हो जाती है, और उस दिन व्रती उगते सूर्य की पूजा अर्चना कर के उनसे इस पर्व को सफल बनाने की मन्नत माँगते है, क्योंकि सूर्य को असीम ऊर्जा का स्रोत कहा जाता है, और पृथ्वी पर सूर्य के कारण ही जीवन का अस्तित्व है । दूसरे दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास करके शाम को डूबते सूर्य की पूजा अर्चना कर के रात्रि में प्रसाद ग्रहण करती है जिसे खरना का नाम दिया जाता है । अगर हम यहाँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बात करें तो हम पाएँगे कि पहले दिन सात्विक भोजन करने के बाद जब हमारे शरीर का प्रत्येक हिस्सा इस काम के लिए तैयार हो जाता है कि हम कुछ घण्टे बिना पानी के भी गुजर कर सकते है । चूंकि हम सब यह जानते है कि पानी जीवन का एक मुख्य आधार है और उसके बिना रहना कितना मुश्किल है यह हम अच्छे से जानते ही है । पूरे दिन उपवास रखने और रात्रि को पुनः सात्विक भोजन ग्रहण करने से हमारा शरीर इस तरह से तैयार हो जाता है कि मानों वह वज्र हो और इस तरह से 36 घण्टों से ज्यादा का ही निर्जला उपवास के लिए शरीर तैयार हो जाता है ।  अब आती है बात कि हम निर्जला उपवास क्यों करें ? तो हमारा शरीर एक मशीन की तरह है जिसमें भोजन रूपी ईंधन डालने से यह चलता है, लेकिन क्या कभी यह मशीन थकती नहीं है, यह ख़राब नहीं होती ? होती है, इसीलिए कुछ समय के विश्राम के साथ शरीर  एक दम चुस्त दुरुस्त रहे इसका इंतजाम हम त्योहार के करने के साथ पूरा कर लेते  है । अब बात आती है यह पर्व अभी ही क्यों मनाएं ? तो इसका उत्तर है, दीपावली के दिन तो हम अपने घर और उसके आसपास की सफाई कर लेते है लेकिन हमारा दायरा उतना ही नहीं है, हमारा दायित्व बनता है है कि हम अपने जीवन के हर स्रोत को ठीक ढंग से साफ रखें । इस त्योहार को मनाने के लिए गाँव के आसपास के जलाशय को साफ करके, उसमें कीटनाशक डाला जाता है ताकि जलीय जीवों के साथ साथ व्रती को उसमें पनप चुके खतरनाक कीट-पतंगों को मार डालें । साथ ही उसके आसपास के जगह को भी साफ कर के वहाँ को सजाकर , सम्पूर्ण रास्ते को साफ करते हैं ताकि व्रती को किसी प्रकार का कोई कष्ट न हो ।
     अब बात आती है छठ पर्व के मुख्य दिन की जिस दिन व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और डूबते सूर्य से सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की दुआ माँगते हैं । यह इकलौता ऐसा पर्व है जहाँ डूबते सूर्य की पूजा पहले की जाती है, उगते सूर्य की बाद में । यह इस बात का द्योतक हैं कि हम सूर्य के उस समय भी सहायक है जब उसकी शक्ति हमारे नजरों ने क्षीण हो रही हैं, अर्थात हम सबसे पहले इस विश्व के सभी दुखों में उसके साथ है, सुख के समय तो सब साथ होते हैं । जीवन एक ऐसा रास्ता है, जहाँ सुख और दुःख कदम कदम पर साथ मते है, और हम दुःख के समय किसी का साथ छोड़ देते हैं, जब उसे सबसे ज्यादा हमारी जरूरत होती है । यह पर्व हमें यह संदेश और शक्ति देता है कि हम अपनो के साथ सदैव साथ रहे, चाहे उसपर कोई आपदा क्यों न आन पड़े । एक चीज़ और गौर करने वाली है, कि छठ के पूजा में केवल प्रकृति के उपहार फलों और घर के अनाजों का उपयोग करते हैं । इसमें किसी प्रकार के किसी कित्रिम चीजों का उपयोग नहीं करते हैं ।
     कारण और भी बहुत है, और सबको अगर इकठ्ठा करने और सूचीबद्ध करने लगे तो दिन बीत जाएं मगर कहानी खत्म न हो ।

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