वक़्त बदलते ही चेहरे पर चढ़ा लेते हैं नक़ाब
या परवरदिगार चेहरे के पीछे चेहरा बनाने लगा
इश्क़ में रुसवाईयाँ कुछ इस क़दर बढ़ रही
देख बदलता रंग इंसानों के गिरगिट लजाने लगा
कहीं दूर बजते थे ढोल खुशियों के ज़माने में
वहाँ शहनाइयाँ भी मातमी धुन बजाने लगा
शोला सा धधक उठा हैं, मेरे जान के भीतर
इंसान पीठ के पीछे, मोहब्बत फ़रमाने लगा
जिसे चाहो तुम जान से ज़्यादा, कद्र करते नहीं वो अब
लगा कर गले से तुमको, खंज़र पीठ में धसाने लगा
मिट जाने पर हसरतें सारी इस दुनिया से
मोहब्बत की चाह में इंसा दर-दर भटकने लगा
किसी के ख़्वाब को सजाना, थी एक चाह मेरी
वह इंसा बदल गया, ख़्वाब दूसरा दिखाने लगा
मुझे मारकर जमाने में, मुझमें जिंदा किया
मारकर ठोकर ज़माने को, मैं भी इतराने लगा
ख़ाक में मिल गई, वह कोशिशें सारी
आख़िर जब इंसान बदल गया, तो रुतवा बदल गया
या परवरदिगार चेहरे के पीछे चेहरा बनाने लगा
इश्क़ में रुसवाईयाँ कुछ इस क़दर बढ़ रही
देख बदलता रंग इंसानों के गिरगिट लजाने लगा
कहीं दूर बजते थे ढोल खुशियों के ज़माने में
वहाँ शहनाइयाँ भी मातमी धुन बजाने लगा
शोला सा धधक उठा हैं, मेरे जान के भीतर
इंसान पीठ के पीछे, मोहब्बत फ़रमाने लगा
जिसे चाहो तुम जान से ज़्यादा, कद्र करते नहीं वो अब
लगा कर गले से तुमको, खंज़र पीठ में धसाने लगा
मिट जाने पर हसरतें सारी इस दुनिया से
मोहब्बत की चाह में इंसा दर-दर भटकने लगा
किसी के ख़्वाब को सजाना, थी एक चाह मेरी
वह इंसा बदल गया, ख़्वाब दूसरा दिखाने लगा
मुझे मारकर जमाने में, मुझमें जिंदा किया
मारकर ठोकर ज़माने को, मैं भी इतराने लगा
ख़ाक में मिल गई, वह कोशिशें सारी
आख़िर जब इंसान बदल गया, तो रुतवा बदल गया
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