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दंगा क्या हैं

परसों दोपहर में मैं फैक्लटी पहुँचा चुकी मन तो नहीं था लेकिन परीक्षा की वजह से जाना पड़ा, एक मित्र मिले मुझे कुशल क्षेम पूछे, मैं भी लगे हाथ उनसे भी पूछ लिया ।

उसके बाद बोले मिलते है गुरु परीक्षा के बाद । हम भी हामी भर दिए, उसके बाद मैं परीक्षा खत्म कर के एक दोस्त के जन्मदिन की भव्य पार्टी में शिरकत करने के बाद, उस महानुभाव को कॉल किया कि आखिर क्या बात करनी थी उन्हें मुझसे ?
कॉल उठाते बोले :- हेलो
मैं :- हाँ भाई राम राम
पीयूष (बदला हुआ नाम) :- महादेव
मैं :- तब मिले के बोलले रहुव
पीयूष :- ह आव भीटी
मैं :- चल 5 मिनट में आव तानी
मैं पहुचाँ वहाँ, ओ वहाँ पहले से ही किसी के साथ चाय और समोसे के चटकारे के साथ इश्क लड़ा रहे थे । मैं पहले तो सोचा चला जाता हूँ जब ये बुलाये ही है तो, लेकिन फिर झेंप गया । आखिर में फिर से कॉल किया उन्होंने बुला लिया । मेरा परिचय कराया अपनी महबूब सनम से
पीयूष :-  रागिनी (बदला हुआ नाम ), ये मेरे फायर ब्रिगेड उज्ज्वल भाई
पीयूष :- और उज्ज्वल, ये मेरी माशूका रागिनी
मैं बोला :-  नमस्ते
उन्होंने हाथ आगे बढ़ा दिए, मैं भी हाथ मिलाकर हेलो बोला
रागिनी :- क्या करते हो तुम यहाँ
मैं :- सभी फैक्लटी में भ्रमण करते रहता हूँ
रागिनी :- क्यों
पीयूष :- अरे ! मजाक कर रहा है ।
रागिनी :- अच्छा,
मैं :- जी
इसी बीच पीयूष बाबू का साही फ़रमान कान में पड़ा जो उन्होंने दुकानदार को मेरे लिए भी चाय के लिए दिए ।
मैं :- भाई, जल्दी बताओ काम क्या था । किसलिए बुलाये थे यहाँ ।
पीयूष :- तेरे को जलाने को, तू जब भी मुझे मेरी माशूका के साथ देखता है तो जलता है।
मैं :- भक साले, मैं क्यों जलूंगा रे, भाभी को तेरे साथ देखकर । भाभी तेरे साथ न रहेगी तो मेरे साथ थोड़े रहेगी । क्या भाभी किसके साथ रहोगी ।
भाभी एक दम चुप
मैं :- अरे भाभी, बोलो तो, क्या सोच रही हो ?  यहीं न कि साला अभी शादी हुआ नहीं ,मैं भाभी कैसे बन गई ? तो भाभी ये जान लो, हम लड़के होते ही कमीने हैं, क्लास के पहले दिन ही जब कोई लड़की आती है उसी दिन हमलोग फरिया लेते है कि कौन किसकी वाली, भले उसका उस से इश्क चले न चले आ पहले दिन से ही पूरे क्लास की भाभी बन चुकी होती है ।
ठहाका गूंजता है ।
चुकी निशा पूरे वातावरण को अपने आगोश में ले रही थी तो मैं झट से बात निपटाने को सोचा ।
मैं :- अबे ! साले बोल तो किसलिए बुलाया था ।
पीयूष :- तेरे को बड़ी जल्दी लगी है ।
मैं :- दूर जानी होती है भाई, तेरे जैसा कैंपस में ही नहीं रहता हूँ
पीयूष :- तुमसे कितना बार बोला तू मेरे रूम में आ जा ।
मैं :- चल जल्दी से काम बता नहीं तो मैं चला ।
पीयूष :- साले फायर ब्रिगेड, तू आज इतना गर्मा क्यों रहा है ।
मैं :- क्योंकि आज बहुत आग बुझा चुका ।
रागिनी :- ये आग बुझाने का काम कब से करते हो ।
मैं :- जब से प्यार मोहब्बत समझ में आई, और मेरे जिंदगी में कोई नहीं आई तब से ही बस प्यार के टकराव से उत्पन्न आग को अपने शब्द जल से बुझाते आया हूँ ।
रागिनी :- (पीयूष से )  तो आज आग कहाँ लगी है जो बुलाये हो ।
पीयूष :- तू सवाल बहुत करती है। कुछ देर रुक तो सब बताता हूँ ।
रागिनी :- ओके
पीयूष :- हाँ तो भाई, आज कुछ पूछने के लिए बुलाया था ।
मैं :- तो साले उस समय से बकैती काहे पेले जा रहे थे ।
पीयूष :- साले तू ही तो बताता है जब कवि सम्मेलन में बोला जाता है तब शुरू के 15 मिनट भूमिका बाँधा जाता हैं ।
मैं :- तो ये कौन सा कवि सम्मेलन शुरू करा दिए । खैर अगर भूमिका बाँधना हो गया हो तो काम की बात पर आए ।
पीयूष :- भाई, मेरे मन में कुछ सवाल आ रहे हैं । क्या तू जबाब देगा ।
मैं :- अगर जबाब जानता रहूँगा तो जरूर बताऊंगा ।
मैं सोचा कि कहीं किसी विषय का सवाल करेगा क्योंकि उसका और मेरा विषय एक दम एक ही है ।
पीयूष :- भाई, सवाल थोड़ा बड़ा है ।
मैं :- आज पूरी रात तू भूमिका ही बाँध यहीं बैठ कर , कल सुबह तक हो जाएगा तो मैं आ जाऊंगा ।
पीयूष :- साले तेरे को इतना बेचैनी क्यों हैं ?
मैं :- तेरे जैसा मुझे भी माशूका नहीं है, मुझे जा कर पढ़ाई भी करनी है ।
पीयूष :-  चल, ये बता, आखिर ये दंगा होता क्या है ?
मैं तो उसके मुँह से एक ओछी प्रश्न की कल्पना में बैठा था कि उसने सीधे वज्र प्रश्न कर दिया । मैं ठिठक सा गया । क्या ये यहीं अपना पीयूष है ? साला आज तक जिसके मुँह से लड़कियों के अलावा किसी की बात सुनी नहीं ओ इतना गम्भीर सवाल पूछ दिया । मुझे तो ऐसा प्रतीत हुआ कि दूध में नींबू डालने से ओ पनीर के बदले दही बन गया ।
मैं :- भक साले, ये प्रश्न क्यों पूछ रहा ?  ये तेरे काम का नहीं है ।
रागिनी का मुँह भी अभी तक खुला ही था ।
मैं :- भाभी, इसको कौन सा जड़ी सूंघा दी । ये तो पूरा बदल गया ।
रागिनी :- हाँ, आज इसे क्या हो गया ? पक्का आज लहरी या भांग खा कर आया होगा ।
मैं :- खैर भाई तूने प्रश्न तो अच्छा पूछा हैं । मैं कोशिश करता हूँ जबाब देने को ।
पीयूष :- हाँ, भाई ये सवाल बहुत दिन से मन में था ।
मैं :- भाई , मांफ करना मैं आज तक तुम्हे गलत ही समझते आया था । लेकिन तू तो बहुत कमीना निकला ।
चूंकि दोस्ती में अच्छे दोस्त को कमीना कहा जाता है ।
पीयूष :- भाई, जल्दी से बता ।
मैं :- भाई, मेरे-तेरे जैसे ही ख़लीहर लोग, जिनको कोई काम धंधा नहीं होता ओ इधर की बात उधर और उधर की बात इधर अपने बुद्धि की नमक मिर्च रगड़ कर परोसते रहते हैं, और दोनों को एक दूसरे के ख़िलाफ़ भड़काते रहते हैं । और जब दोनों भड़क जाते हैं, तब ओ चुपचाप बैठकर तमाशा देखते हैं और निर्दोष लोग मारे जाते हैं ।
पीयूष :- कुछ समझ में नहीं आया कोई उदाहरण देके समझाओ ।
मैं :- मान लो, दो हॉस्टल है, सुभाष और निराला ।
पीयूष :- साले यहाँ ओ हॉस्टल नहीं है, चल बिड़ला और एल•बी•एस• मान लेते हैं ।
मैं :- तेरे को जो मानना है मान मैं तुमको बिड़ला और एल•बी•एस• पर नहीं समझाऊंगा , क्योंकि मुझे किसी से पंगा नहीं लेना ।
पीयूष :- चल ठीक है ।
मैं :- तो दोनों हॉस्टल में हमेशा शांति, सौहार्द, और मित्रवत व्यवहार रहता है जो दोनों हॉस्टल के कुछ लोगो को बर्दाश्त नहीं है । ओ लोग इसे आखाड़ा बनाना चाहते हैं । आखिर में ओ लोग एक दूसरे की चुगली करते हैं । और बात धीरे धीरे इतनी बढ़ जाती है कि लड़ाई हो ही जाती है ।
अब जो महानुभाव लोग चुगली करते थे, ओ धीरे से साइड है, जो मारने के लिए उकसा रहे थे ओ आज नजर नहीं आ रहे । लडाई होती है, मारे कौन जाते हैं? चोटें किसको आती हैं ?  ये तो समझ ही गए होंगे ।
पीयूष :- हाँ , भाई ऐसे में तो जिनका इस से कोई सरोकार नहीं था, वहीं कुटे गए ।
मैं :- हाँ । अब समझ गया दंगा क्या होता है ?
पीयूष :- हाँ, लेकिन ये बता जो ये भड़काते है, उन सालों को मिलता क्या है ?
मैं :- फंडिंग
पीयूष :- फंडिंग, लेकिन इसके लिए भला कोई क्यों फंडिंग करेगा, तू पूरा सठिया गया है ।
मैं :- भाई, चूंकि दंगा के ओट में बहुत सी राजनीतिक दल अपना राजनीतिक रोटी सेंक कर वोट बैंक को साधती हैं । इसलिए उनका फंडिंग करना काम ही है ।
पीयूष :- तो क्या, ये दंगे होते नहीं कराये जाते हैं ।
मैं :- हाँ, बिल्कुल ।
पीयूष :-  साले, वोट पाने के लिए क्या क्या कुकर्म करते हैं ।
मैं :- तू भी नेता बनेगा तो यहीं करेगा, जो ये लोग करते हैं ।
पीयूष :- मुझे नहीं बनाना ओ नेता जो विकाश के बदले विनाश करे, देश की जनता का गलत इस्तेमाल करें । जो उत्थान के बदले पतन की राजनीति करें ।
रागिनी :- (मज़ाक उड़ाते हुए )बड़ी अक्ल आ गई है तुझमें
पीयूष :- डार्लिंग अभी मज़ाक के मूड में नहीं हूँ ।
मैं :- भाभी, अभी बहुत गम्भीर बातें हो रही हैं, प्लीज् इसे मज़ाक में मत उड़ाइये ।
रागिनी :- सॉरी, मेरा मतलब दूसरा था ।
पीयूष :-  भाई ये बात बता, की मैं आज तक जितना दंगा सुना हूँ अपने जीवन में सब हिन्दू बनाम मुस्लिम ही सुना हूँ ।तो हिन्दू और मुस्लिम एक दूसरे के दुश्मन क्यों हैं?  जबकि क़ुरान तो मैं पढ़ा हूँ उसमें तो हिंसा करना हराम बताया गया हैं । वेद भी हमारा समाजिक सौहार्द की बात करता है । तो फिर इसी दोनों को मानने वाले क्यों लड़ते रहते हैं ।
मैं :- भाई, देख, जो लड़ाई करते हैं, ओ कभी वेद, क़ुरान को पढ़ते नहीं है, और जो पढ़ते हैं ओ उसका सही बात लोगों तक पहुँचाते नहीं है ।
पीयूष :- ओ, तो ये बात है ।
मैं :- हाँ, क्योंकि सभी धर्म ग्रन्थों में हिंसा को वर्जित बताया गया है । और दो ज्ञानी लोग कभी हिंसा नहीं करते ।
पीयूष :- आभार भाई ये ज्ञान देने के लिए । मेरे मन की आग अब जाकर शांत हुई ।
मैं :- चल ये तो ठीक है, अब मैं चलता हूँ ।
पीयूष :- अबे साले, रुक मैं भी चलता हूँ , लेकिन एक एक कॉफ़ी और हो जाय ।
मैं जानता था कि कितना भी बहाना कर लूँ महानुभाव के ऊपर उसका कोई असर नहीं पड़ने वाला  तो मैं भी हाँ में ही सर हिला दिया ।
कॉफ़ी पीने के बाद हम तीनों लोग चले । त्रिवेणी संकुल जाने के लिए भाभी भैया को आलिंगन कर और एक पप्पी देकर चली आचनक पीछे मेरे तरफ मुड़ी और हाथ मिलाई, मेरा व्हाट्सएप न० मांगी और बोली क्या आप मेरी भी फायर ब्रिगेड बनोंगे ।
मैं बोला बाकी बात व्हाट्सएप पर ......
ठीक है बोल कर ओ ओझल हो गई, मैं सर सुंदरलाल अस्पताल के पास से अपने हॉस्टल आने के लिए मुड़ा और साहब जी लंका निकल गए सुट्टा पीने ।
अब मेरी भी बात और मज़ाक भाभी से होने लगी हैं ........

बाकी बातें अगले लेख में......

                                   उज्ज्वल कुमार सिंह
                                        हिंदी विभाग
                             काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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