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Showing posts from May, 2019

कैसे कहूँ, प्यार है तुमसे

कैसे कहूँ मुझे प्यार है तुमसे डरता बहुत हूँ, खो देने से किस मुँह से कहूँ मुझे प्यार है तुमसे डरता बहुत हूँ, तुमसे अगर कह भी दिया तो वह मेरे जिंदगी के शायद आखिरी शब्द होंगे इसलिए डरता हूँ मार देता हूँ खुद को खुदगर्जी में ढाँप लेता हूँ आँखों को तुमसे जो बहुत कुछ बताना चाहती हैं तुम्हें रोक लेता हूँ होंठ को किसी हिटलर की तरह ताकि बुदबुदा न सके कभी कोई प्यार के नग़मे रोक लेता हूँ उंगलियों को उस तानाशाह की तरह ताकि वह कर सकें न कोई गुस्ताखी और उलझ जाय न रेशमी बालों में जहाँ भटकना चाहता है हरपल मगर सम्भल जाता हूँ मैं सम्भाल लेता हूँ खुद को क्योंकि तुम्हारा दोस्त मजबूत बहुत है हाँ... हाँ मजबूत बहुत है बाहर से बहुत निर्बल है वह अंदर से इसलिए टूटना चाहता नहीं दोबारा लेकिन कोई बात नहीं युग बीतेगा, उम्र बढ़ेगी जिंदगी कम होगी परन्तु एक चीज जो सदैव ठहरी होगी वह है दिल मेरा जो कभी न गुनगुनयेगा तेरे प्यार के नग़मे अपने होठों से

व्यापारी बैठे हैं

मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे है.................... दिल का लगा बाज़ार यहाँ व्यापारी बैठे है.................... रोज सबरे उठते-उठते मंडी में दौड़ आते देर रात तक ये सौदागर समय यहाँ पर बिताते रहना तू होशियार यहाँ मदारी बैठे है............  मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे है............... दिल का सौदा झटकों में करते जिस्म चंद रुपयों में बेचें पाकर गाड़ी, मोटर, बंगला सुख की परिभाषा खेंचे हरदम रहना तैयार यहाँ वो किये तैयारी बैठे हैं.. मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे हैं............... आज पहला, कल दूसरी परसों तीसरी लाएँ चमक-चमक कर, ऐंठ-ऐंठ कर अपना रुत दिखलाए पापी, लोभी, छली, कपटी सब लिए लुकारी बैठे हैं....... मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे हैं.............. प्यार के पावन-पाक मतलब को बदनाम इन्होंने कर डालें शतरंज की चाल से ये खुद चलते परेशान अपनों को कर डालें इनके चंगुल से बचना थामे हथियार ये बैठे हैं मत करना तू प्यार यहाँ व्यापारी बैठे हैं............. दिल का लगा बाज़ार यहाँ व्यापारी बैठे हैं............. मत करना तू प्यार यहाँ व्...

तुझे यार कहूँ या प्यार कहूँ

तुझे यार कहूँ या प्यार कहूँ या अपने दिल का मैं खून करूँ शायद ऐसा कभी होगा नहीं दिल की बात लब पर नहीं मैंने जब-जब भी तुझे देखा है अपनी नजरों से निरेखा है तू पास मेरे रह जाती हो मेरे स्वप्नों को तू सजाती हो लेकिन मैं हूँ मजबूर यहाँ पास होकर भी तुमसे दूर यहाँ जीवन की आपाधापी में तुम्हें वरदान कहूँ या उपहार कहूँ तुझे यार कहूँ या प्यार कहूँ या अपने दिल का मैं खून करूँ जब अनगिनत घड़ियां सोती है तब तेरी कहानी रचता हूँ जब दीर्घ मौन मैं हो जाऊँगा उस पल की यादें रचता हूँ एक पल को पूरा जीवन कहता जीवन को पल-पल रचता हूँ पल-पल जीवन में सौ कहानी कहानी का कल मैं रचता हूँ जीवन के इस नए कहानी को मतलब मैं लिखूँ या बेकार लिखूँ तुझे यार कहूँ या प्यार कहूँ या अपने दिल का मैं खून करूँ यह बंधन प्यारा टूटे न मेरी मौन कभी भी टूटे न पग-पग पर विस्वास जो हैं वह विस्वास कभी भी रूठे न चलता समर में एक दिन मैं भी इसमें तलवार मेरी कभी टूटे न मेरा यार कभी भी रूठे न दिल से प्यार कभी भी छूटे न किया कठोर हृदय अपना मैं मगर डोर साँस का टूटे न छोड़ घर-बार परिंदे अपने मैं खुद को और कितना ब...

शाम हो तुम

आज सुबह सवेरे जीवन के किसी ने कहा, मैं तुम्हें शाम लिखूँ मगर असमंजस में था कौन सी शाम जीवन की शाम, या शाम का जीवन दोनों ही ढल जाते हैं एकाएक बिना किसी पूर्व सूचना के या यूं कहें, हमें इशारे समझ न आते शाम भी करती हैं इशारे ढलने से पहले तुमने भी किया था, बदलने से पहले मगर........                     मैं समझा नहीं, समय रहते एक ढली तो रात हो गई एक के ढलते बरसात हो गई बारिश में भींगे, हम तुम उस शाम की तरह जब होकर भी नहीं थी या कहें तो पास थी मगर केवल यादों में सिमटी हुई एक ख़्वाब की तरह जो अधूरी होकर भी पूर्ण थी बस किसी तरह से ढलती रहें यह शाम मन करता है लिख दूँ तुझे मणिकर्णिका का वह शाम जहाँ खुद को विलीन किया था तेरे लिए जो लेकर मुझे विदा हो गई मुझसे खुद में खुद की दुनिया में जो नजरों के सामने भी मैं नजरअंदाज हूँ तुमसे                               उज्ज्वल कुमार सिंह                   ...