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Showing posts from January, 2019

माली और गुलाब

माली ने तोड़ दिया खिला हुआ गुलाब काँटों ने रोका भी लेकिन उसे किसी और को चढ़ाने का मन था लेकिन गुलाब का किसी को चढ़ना पसन्द नहीं इसीलिए बिखेर दिए अपने सभी पंखुड़ियों को तोड़ दिए सपने अपने खिलने का महकने का चमकने का और सोई गई आशा किसी ढ़लती शाम सी फिर भी माली निर्मोही था छोड़ा नहीं उसे उस हाल में भी कुचल दिया पैरों के तले ताकि वह मचल न सकें पुनः कभी दमक न सकें वह माली कभी संकट में हो तो क्या गुलाब चढ़ेगा उसपर या लुटाकर अपनी हस्ती बचा लेगा अपने माली को जिसने उसे सींचा था कभी या लेगा कुचले जाने का बदला उस निर्मोही से जीना तो उसी ने सिखाया था एक बात मोहब्बत की सिखाया था उसने काँटों के बीच मुस्कुराने की कला सिखाया था उसने मुस्कुराना जीवन में सिखाया था  उसने मोहब्बत में जीना सिखाया था उसने                                      उज्ज्वल कुमार सिंह                                   ...

नफ़रत

नफ़रत शायद यह मोहब्बत के बाद होता हैं दिल के हर बिखरे टुकड़े के खनक से निकलती हैं आवाज, नफ़रत..नफ़रत.. नफ़रत गूँजता व्योम में जन-जन के आलोक में मुस्कुराता चेहरा भी चिल्लाता हैं, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत पूर्ववर्ती राग न होने पर घृणा होती हैं अनुराग होने पर नफ़रत कभी दौर-ए-जमाना ऐसा था चेहरा देख कर करते थे दिन का आगाज़ कभी दौर-ए-जमाना ऐसा था एक अल्फ़ाज़ सुनने को रात भर जागते थे कभी दौर-ए-जमाना ऐसा भी था घण्टों बीत जाता था बाहों में उसके अब उसे मेरी आवाज़ से भी नफ़रत हैं मेरे नाम तो मानो 46 का हरिया चमार क्योंकि उसके लब चिल्लाते है, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत मुझसे न होगा यह कभी क्योंकि प्रेम नफ़रत नहीं एक नफ़रत ही बन सकता है, नफ़रत.. नफ़रत.. नफ़रत                                            उज्ज्वल कुमार सिंह                                             हिन्दी विभाग   ...