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अंधेरे रहस्य (भाग 3)


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                                भाग 3
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दिन है कि ढ़लने का नाम न ले रहा और धड़कन आज सातवें आसमान पर है । दिल बेतहासा धड़के जा रहा था और मन बैठा जा रहा था कि क्या होगा शाम को । किसी ने अगर देख लिया तो क्या होगा ? घरवालों को जब पता चलेगा तो उनपर क्या गुजरेगी ? मेरा क्या हाल होगा ? खैर, इनसब की कोई परवाह नहीं, जब दोस्ती का हाथ मिलाया हैं तो दोस्ती निभाउंगा । अगर अभी ही तो समय है अपने दोस्ती को साबित करने का । लेकिन घरवालों ने जिसने मेरे लिए क्या कुछ नहीं किया, उनसे झूठ बोलकर क्या मैं ठीक कर रहा हूँ ?
      दोपहर होने को आई और आज भूख भी न लग रही । घरवाले परेशान कि क्या हो गया, रात से कुछ खाये नहीं ? कोई दिक्कत है बेटा, कोई बात हो तो बताओ ? आवाज गूँजती हैं कानों में । रवि ध्यान से घबड़ाकर उठता हैं और चारों तरफ देखता है कि आवाज किसकी हैं । दादाजी की आवाज ही आज अनजानी लग रही हैं । कृष्ण के मुरली की आवाज सुनकर जैसे गायें दौड़ी चली आती थी, वैसे ही दादाजी की एक आवाज पर रवि उनके पास दौड़ा जाता, लेकिन मन के उहापोह में आज उस आवाज से अपरिचित लगता हैं । खैर, शाम आती हैं, और अपना किताब लिए रवि जल्दी से घर से निकलता है । शायद आज मित्रता, परिवार पर हावी हो गया था । आखिर मित्रता भी तो ऐसा रिश्ता है जो परिवार का हिस्सा तो नहीं, लेकिन उससे कम भी नहीं ।
        अभी गाँव के बाहर निकला ही था, कि कान में साइकिल की सनसनाहट सुनाई पड़ती हैं । कोई बराबर में आकर साइकिल रोकता है । दिल की धड़कन और तेज हो जाती हैं और रवि की गति और बढ़ जाती हैं ।
प्रीति :- रवि, धीरे चलो न । साथ चलते हैं ।
रवि :- नहीं, गाँव का कोई देख लेगा तो मेरी खैरियत नहीं ।
प्रीति :- कितना डरते हो तुम ? अरे ! मुझे देखो , मैं लड़की होखर भी नहीं डर रही और एक तुम हो जो लड़कियों की तरह डरे जा रहे हो ।
रवि :- तुम समझने की कोशिश करो । अगर मेरे घरवालों को यह बात पता चल गई कि मैं उनसे झूठ बोला हूँ, तो मार-मार के मेरा कीमा बना देंगे ।
प्रीति :- कुछ नहीं होगा ।
इतने में मंजिल आ गई जहाँ दोनों को पढ़ना था । रवि लगभग पसीने से नहा चुका है, क्योंकि घबड़ाहट और पसीने के रिश्ता दामन और चोली के रिश्ते से प्रतीत होता हैं । थोड़ी सी घबड़ाहट क्या हुई, पसीने ऐसे निकलते हैं शरीर से मानों आज एक गंगा पसीने की यहाँ से बहेगी । कभी कभी कोई चीज स्वास्थ्य के लिए हितकर होने के वावजूद भी उसका न होना ही उचित माना जाता हैं । रवि साइकिल से उतर कर ऐसे भागा जैसे आज उसे ओलंपिक का स्वर्ण पदक अपने नाम करने हो । दौड़ भी इतना तेज और अनियंत्रित की जा कर सीधे दरवाजे से टकराता हैं, और दरवाजे पर दस्तक की आवाज से आरती डर जाती हैं , आखिर कौन आकर गिर गया दरवाजे पर । वह धिरे से दरवाजा खोलती हैं और एक पल की देरी किये बिना रवि अंदर जाकर बिस्तर पर सीधे गिरता है तो थोड़ा सांस में सांस आती हैं ।
आरती :- क्यों रवि, क्या हुआ, इतना परेशान क्यों हो ? और यह प्रीति कहाँ रह गई ?
रवि अभी थोड़े देर न बोलने का इशारा करता है और फिर निढाल होकर गिर पड़ता हैं । तभी प्रीति दरवाजे से अंदर अति हैं, और आरती के गले लग जाती हैं ।
आरती :- प्रीति, मैं तुम्हीं लोग का इंतजार कर रही थी ।
प्रीति :- अच्छा, तो खाने पीने के लिए भी कुछ इंतजाम की हो या ऐसे ही ।
आरती :- कुत्ती, ये तेरे आने पर खाने पीने का इंतजाम करूँ ।
प्रीति :- न तो अपने जीजा के लिए कर लेती ।
आरती :- मैं जीजा का स्वागत कैसे करूँगी, वह मैं जानती हूँ, और वह मेरे और उनके बीच की बात है ।
प्रीति :- अरे वाह ! ये कब से ?
आरती :- छोड़, बकवास की बात । मेरी भी दोस्ती करा दे न रवि से ।
प्रीति :- ठीक है, कोशिश करती हूँ ।
आरती :- चल उठा कर पढ़ने बैठ, न तो जिस तरह वह हांफ रहा था, सो जाएगा ।
प्रीति :- हाँ, मगर एक ग्लास पानी लाके पिला दें, न तो मर जायेगा । बहुत डरपोक लड़का हैं । साला, रितिक रहता तो अबतक इस तरह मुझे बन्द कमरे में कितना कुछ पढ़ा दिया होता । और मैं स्वर्ग की अनुभूति प्राप्त कर रही होती ।
आरती :- "ज्यादा रोमांटिक न बन । पढ़ाई करने आई हो, चुपचाप पढ़ाई कर ।" इतना कहकर आँख मारते हुए वह अंदर चली गई और एक बड़े से ग्लास में एक ग्लास पानी लेकर आती हैं ।
प्रीति :- इतने में तो यह नहा भी लेगा ।
आरती :- पढ़ाई पर ध्यान दो ।
रवि एक ही सांस में पूरा पानी गटक जाता हैं, और तब उसके हलक में अटके प्राण फिर से जीवित हो उठते हैं और पढ़ाने बैठ जाता हैं । एक मेज के दोनों तरफ एक एक कुर्सी लगी हैं । एक पर बैठते हुए प्रीति को दूसरे पर बैठने का इशारा करता हैं । मगर प्रीति कुर्सी को उठाकर रवि के तरफ ही लेकर आती है, और बराबर में कुर्सी लगाकर उसपर बैठे हुए बोलती हैं, अब पढ़ाओ ।
रवि :- सामने बैठो न, वहाँ क्या दिक्कत थी तुम्हें ?
प्रीति :- अरे यार, समझ न रहे हो । जो भी समझाओगे, उधे से उल्टा दिखेगा, इसलिए इधर आ गया ।
रवि :- तो क्या आरती को वह उल्टा न दिखेगा, लेकिन वह तो उधर बैठी हैं न ।
प्रीति :- यार छोड़ो न इन सब बातों को, पढ़ाना शुरू करो ।
रवि :- मैं ऐसे कंफर्टेबल महसूस न कर रहा हूँ, प्लीज् उधर चली जाओ ।
प्रीति :- नहीं जाऊँगी ।
        रवि सहम सा गया, आजतक लड़कियों के परछाई से भागने वाले का क्या हश्र हुआ, वहीं समझ रहा । संकोच के मारे उसकी नजर किताब से डोलती नहीं और उसी तरह वह पढ़ाना शुरू करता है । तभी थोड़े देर बाद प्रीति अपना हाथ उसके जांघो पर रखती हैं, और वह उछलकर दूर खड़ा हो जाता हैं ।
लगभग डाँटते हुए स्वर में चिल्लाता हैं । " यह क्या कर रही हो ?"
प्रीति :- ज्यादा शोर न मचाओ, वरना मैं जब शोर मचाऊंगी तो तेरा क्या हाल होगा, समझ रही हो ।
रवि :- दरवाजा खोलो, मुझे यहाँ से जाना है । मुझे नहीं पढ़ाना किसी को ।
प्रीति :- खोल देती हूँ, लेकिन समझ लेना, मैं सबको बताऊंगी कि तुमने मेरे साथ छेड़खानी की हैं ।
रवि :- मैंने कुछ नहीं किया । (रोनी सूरत से ) मैंने क्या बिगाड़ा हैं तुम्हारा, क्यों ऐसा कर रही हैं ?
प्रीति :- क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूँ और इतना मेरा हक हैं ।
रवि :- क्या बकवास कर रही हो । मुझे प्यार व्यार कुछ समझ न आता, और ना ही मुझे करनी हैं ।
प्रीति :- तो समझ लो , बाहर जब निकलोगे तब क्या होगा । अब चुपचाप जो मैं कहती हूँ, वह करना वरना यह बात सबको पता चल जाएगी । फिर सोचो तुम्हारे घरवाले तेरा क्या हाल करेंगे ।
रवि रोने लगता है, और कहता है "प्लीज्, मुझे छोड़ दो ।" क्यों मुझे बर्बाद करने पर तुली हो ।
प्रीति :- और तेरी चाहत में मैं बर्बाद हो गई उसका क्या ?
रवि :- यह ठीक बात नहीं है ।
प्रीति :- अब जो मैं कहूंगी उतना करना, वरना तो समझ रहे हो न । कितना भी सफाई दोगे, कौन करेगा तेरी बातों का विस्वास । कोई नहीं । सब मुझे ही सच्चा कहेंगे ।
रवि :- क्या चाहती हो तुम ?
प्रीति :- जब मैं जो कहूँ उसे चुपचाप मान लेना, और अपना न० दो मैं रात को 7 बजे रोज कॉल करूँगी । चुपचाप फोन उठाकर घर के किसी कोने में जाकर तबतक बात करना जब तक मैं चाहू ।
रवि :- ठीक है कहकर बाहर निकलता है और बेतहासा भागते हुए घर आता है और अपने कमरे में बन्द होकर रोता है, क्यों मानी मैं दोस्त की बात ? क्यों घरवालों से झूठ बोला ?

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