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Showing posts from November, 2018

गंगा तट और मैं

कल की शाम जब बैठा था अकेला गंगा के तट पर हिलोरें उठ रही थी दिल में आज अगर शांत थी तो गंगा की न थकने वाली धारा दिल बेचैन था आख़िर आज सदियों पुरानी याद जैसी कुछ याद आ रही थी मगर गंगा की अविरल धारा में बह जाती और मन सोचते रह जाता एक कहानी थी जो आगे बढ़ी थी मगर उसी रिश्ते की तरह जो दोस्ती से आगे बढ़कर आगे तो निकलती है लेकिन साथ ही, तोड़ देती है दम जल्द ही शायद कोई और मिल जाता है आज की शाम, जिंदगी में अंधेरे की शाम सी थी बहुत कुछ भूलकर, बहुत कुछ याद कर बह उठी तबसे देख-देख कर थकी आँखे बून्द पहले महीनों के प्यासी गालों को सींचकर बढ़े आगे फिर जा मिले गंगा की उस धारा में जो आज शांत थी यह बताने के लिए कि तेरी जिंदगी भी अब शांत हो सकती है एक अंधकार को लिपट कर तभी सहसा एक पंक्षी युगल गुज़रे बहुत खुश थे शायद प्रकृति भी मुझे  ईर्ष्या आग में झुलसाना चाहती थी निरंतर बहते आंखों के बीच जब मैं रुमाल निकाला, आँखे पोछि अब सबकुछ साफ था आँखों में पड़े धूल निकल चुके थे चेहरा था यार की परन्तु आख़िरी यार की इसे खोना न चाहता  बस इसीलिए मैं हूँ और वह वह है ना मैं हम ह...

बूढ़े बरगद बाबा

रविवार की सुबह, इसबार हमलोग के लिए किसी श्राप से कम न था । जब नींद खुली तब यह सुनने को मिला कि पता कितने पीढ़ियों की विरासत और गाँव का सबसे बुजुर्ग पीपल जिसे प्यार से सब बूढ़ा बरगद/ दादा कहते थे वह अपनी जगह पर नहीं था । न जाने कितने पक्षियों के और न जानें कितने लोगों के स्वप्न उजड़ गए, कितने लोगों का वसेरा उजड़ गया । उन चिड़ियों के चीख के कल्पना मात्र से कलेजा दहल जाता हैं लेकिन क्या उस कसाई को समझ न आया जिसने यह अत्याचार किया । अब इसे समय की गति का परिणाम कहे या सरकारी जिद का नतीजा कह पाना बहुत ही मुश्किल हैं, क्योंकि शायद अब बूढ़े बाबा की उम्र लड़ गई हो और उनकी मृत्यु इसी प्रकार निर्धारित हो, लेकिन बूढ़े बाबा की शाखाओं में तो अभी इतनी जान बाकी थी कि वह आने वाली पीढ़ियों को अपने गोद में खेलते देख कर प्रसन्नचित होकर अपनी छाया को दूना कर देते । जरूर यह सरकारी महकमे के जिद का कारण हैं, कि भले कुछ भी हो जाय सड़क एक इंच भी टेड़ी न होने पाय । याद आता है, आज से एक महीने पहले गाँव में एक पंचायत बैठी थी, जिसमें सबकी सहमति से एक बात तय हुआ कि हम सरकार से निवेदन करेंगे कि बूढ़े बाबा को छोड़ दिया जाय, और उसक...

क्यों छठ पर्व नहीं, महापर्व हैं ।

भारत पर्व त्योहारों का देश कहा गया है और प्रत्येक त्योहार कहीं न कहीं प्रकति से जुड़ी है, हमारे यहाँ प्रत्येक ऋतु के बाद ऋतु पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है । इन्हीं पर्वों में से एक है, छठ । लेकिन छठ पर्व को पर्व नहीं, महापर्व कहा गया है, यह एकलौता ऐसा त्योहार है जिसे महापर्व कहा जाता है । यह बात अलग है कि यह उत्तर भारत का ही पर्व माना जाता है, और विश्व के जिस भी कोने में उत्तर भारतीय रहते है, वहाँ छठ की धूम एक अलग स्तर पर होती है ।          किसी ने मुझसे पूछा कि छठ को पर्व क्यों नहीं कहते, इसे महापर्व कहने की क्या जरूरत पड़ी, या इसे महापर्व क्यों कहा जाता है ? मैंने उत्तर दिया, और वहीं आपसे साझा भी कर रहा हूँ, अगर आप सहमत होंगे तो अपने आशिर्वाद अवश्य देंगे ।       दीपावली के ठीक पाँच दिन बाद, छठे दिन यह त्योहार मनाया जाता है, जबकि इसकी शुरुआत तो दीपावली के तीन दिन बाद ही, कार्तिक माह के शुक्लपक्ष चतुर्थी तिथि से शुरू हो जाती है, और उस दिन व्रती उगते सूर्य की पूजा अर्चना कर के उनसे इस पर्व को सफल बनाने की मन्नत माँगते है, क्योंकि सूर्य को अ...