ईदगाह एक ऐसा नाम जो सुनते ही बचपन की उस याद को ताजा कर देती है जो हम ईद के मेले से 25 पैसे ही बाँसुरी और 10 आने की जलेबी लेकर शान से अकड़ते आते थे कि आज के बादशाह हम । लेकिन जब थोड़े बड़े हुए तो सबसे पहली बार कक्षा 2 में ईदगाह कहानी पढ़ने को मिली । तब हमें कहानी से मतलब होती थी, लेखक कौन हमें इसकी बिल्कुल भी इल्म नहीं होती या अगर हम यूँ कहें तो हमें उस समय इससे कोई लेना देना नहीं होता था, हमें तो बस कहानियाँ अच्छी लगती थी । जब थोड़े बड़े हुए तो पता चला यह कहानी तो कलम के जादूगर और हिंदी जगत (हिंदुस्तानी तहज़ीब) के उस सितारे की है जिसने हमें होरी के गोदान से लेकर घीसू और माधव के कफ़न से इस दुनिया को परिचय कराया । प्रेमचंद उस नगीने का नाम हैं जिसकी सेवासदन आज भी हमें आईना दिखाती हैं कि देखो तुम किस समाज में रह रहे हो, और किस तरह तुम्हारे ही कारण ये सेवासदन हैं । चलिए ईदगाह कहानी पर आते हैं, यह एक ऐसी कहानी है कि एक एक शब्द से ऐसा लगता हैं कि किरदार बस किताब से बाहर निकलने ही वाला है । कहानी में समाज के चित्रण के साथ साथ उस समय के ...